Wednesday, April 8, 2020

दुनियादारी का महत्त्व(लघुकथा)

दुनियादारी का महत्त्व
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एक परीक्षा हॉल में पाँच टीचर ड्यूटी दे रहे थे।
दो घण्टे बाद अचानक प्रिंसिपल साहब आ गए।
अफरा तफरी में पाँच में से चार टीचर
बड़ी सनद्धता से बच्चों के बीच चहलकदमी करने लगे,मगर एक बैठा रहा।
वह लगातार दो घण्टे खड़े होकर ड्यूटी कर रहा था।
वह दो मिनट पहले ही बैठा था।
प्रिंसिपल साहब दो मिनट रुकने के बाद पुनः अपने चैम्बर में चले गए।
बैठा हुआ टीचर करीब दो तीन मिनट बाद खड़ा होकर स्वाभाविक रूप से चहलकदमी करने लगा
और अंत तक बच्चों के बीच खड़े होकर पूरी सनद्धता से ड्यूटी सम्पन्न किया।
परीक्षा के बाद प्रिंसिपल साहब ने पाँचों डयूटी टीचर को बुलवाया।
एक टीचर जो हॉल में बैठा हुआ पाया गया उसे अलग बैठाया गया।
फिर शेष चार टीचर्स को बताया कि आप लोग बहुत अच्छे काम किए हैं। जब मैं हॉल में पहुँचा तो आप सभी खड़े होकर डयूटी करने लगे।
आपने हमारा सम्मान रखा।
जबकि आप सभी दो घण्टे से बैठकर आपस बस गप्प कर रहे थे।
लेकिन ये महोदय मुझे देखकर भी खड़े नहीं हुए,जबकि मैं सीसीटीवी कैमरे से देख रहा था कि ये लगातार दो घण्टे से खड़े होकर ही ड्यूटी दे रहे थे।
लेकिन ऐसी ड्यूटी क्या जो अपने अधिकारी के सम्मान का ख्याल न रखे।
इसलिए इन्हें तत्काल रूप से सस्पेंड कर रहा हूँ।
अकेला बैठा टीचर थोड़े देर के लिए भौचक होकर प्रिंसिपल साहब की बात सुन रहा था।फिर धीमे से निर्विकार भाव से उठकर उनके कमरे से बाहर निकल गया।
चारों टीचर्स मन ही मन खुश थे अपनी उपलब्धि पर,
जबकि कर्तव्यनिष्ठ टीचर अपने कर्तव्य का हश्र देखकर हतप्रभ था।
उसे ये बात समझ में नहीं आ रही थी कि चापलूसी करने और अपने बॉस को रिझाने के आखिर तरीके क्या हैं?
वह यह भी सोच रहा था कि हमारे बीच के ये टीचर ऐसी ट्रेनिंग कहाँ से लेकर आते हैं।
इनके जैसा बनना क्या आसान काम है?शायद इसी को दुनियादारी कहते हैं।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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