मधुराष्टकम् में महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य ने बालरूप श्रीकृष्ण की मधुरता का मधुरतम वर्णन किया है। श्रीकृष्ण के प्रत्येक अंग एवं गतिविधि मधुर है और उनके संयोग से अन्य सजीव और निर्जीव वस्तुएं भी मधुरता को प्राप्त कर लेती हैं। इस सृष्टि में जो कुछ भी मधुरता है उसको श्रीकृष्ण की मधुरता का एक अंश समझते हुए भक्तों को निरंतर श्रीमाखनचोर का स्मरण करना चाहिए।
🌹मधुराष्टकम् 🌹*
मेरे द्वारा दोहे में भावानुवाद।
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अधरं मधुरं वदनं मधुरं,
नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥१॥
अधर मधुर मुख भी मधुर,मधुर मधुर मुस्कान।
हृदय,चाल,आँखें मधुर,मधुर कृष्ण भगवान।।1।।
वचनं मधुरं चरितं मधुरं
वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥२॥
वचन,चरित जिनका मधुर,मधुर त्रिभंगी रूप।
चलना,फिरना अरु वसन,सब कुछ मधुर अनूप।।2।।
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः
पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥३॥
वेणु,पुष्प सब मधुर है,मधुर चरण अरु हाथ।
नृत्य,मित्रता सब मधुर,मधुर मधुर हे नाथ।।3।।
गीतं मधुरं पीतं मधुरं
भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥४॥
गीत मधुर पीना मधुर,खाना मधुर सुजान।
रूप ,शयन ,टीका मधुर,है तेरा भगवान।।4।।
करणं मधुरं तरणं मधुरं
हरणं मधुरं रमणं मधुरम्।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥५॥
मधुर कार्य,तिरना मधुर,चौर्य मधुर अरु प्यार।
शब्द,शांत रहना मधुर,हे मधुरिम करतार।।5।।
गुंजा मधुरा माला मधुरा
यमुना मधुरा वीची मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥६॥
घुँघुची अरु माला मधुर,यमुना मधुर महान।
लहर,कमल,पानी मधुर,सब कुछ कृष्ण समान।।6।।
गोपी मधुरा लीला मधुरा
युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥७॥
गोपी अरु लीला मधुर,मधुरहि साथ,वियोग।
मधुर भाव से देखना,शिष्ट,मधुर हर योग।7।।
गोपा मधुरा गावो मधुरा
यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥८॥
गोप मधुर,गायें मधुर,मधुर छड़ी अरु सृष्टि।
दलन अरु वरदान मधुर,मधुर रूप की वृष्टि।।8।।
भावानुवाद-डॉ मनोज कुमार सिंह
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