चिंतन के झरोखे से
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कवि/लेखक/साहित्यकार को
चूहा बनने के बजाय
चिड़िया बनना चाहिए।
चूहा केवल कुतरने का काम कर
चीजों को विकृत कर
इधर से उधर फैला देता है,
जबकि चिड़िया
एक एक तिनका जोड़कर
एक घोंसला तैयार कर देती है,
जिसमें जीवन पलता है।
साहित्य भी जीवन को
जोड़ने वाली सुई-धागा है,
कुतरने वाली कैंची नहीं।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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