Wednesday, July 5, 2017

गज़ल

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक गज़ल हाज़िर है।आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

कठिन सवालों को अपने,जो हल कर लेता है।
जीवन की खाई समझो,समतल कर लेता है।

मुश्किल से घबरा जिसने,मुख मोड़ लिया यारों,
अच्छे खासे जीवन को,दलदल कर लेता है।

बहुत नहीं पाया प्रकाश,पर जितना भी पाया,
जुगनू अपना तम रोशन,हर पल कर लेता है।

जब आँखों की धरती में,सूख जाता है पानी,
मन विह्वल होकर खुद को,बादल कर लेता है।

सच की राहों पर चलना,पागलपन कहलाता,
फिर भी खुद को एक कवि,पागल कर लेता है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

Tuesday, July 4, 2017

मुक्तक

राम राम सब मित्र लोगन के!एगो ताज़ा मुक्तक भेंट करत बानी।अच्छा लागे त टिप्पणी जरूर दिहीं।

आँखिन में रउवा प्यार के,काजर लगा के देखीं।
रूखर समय के काँट से,खुद के सजा के देखीं।
बिसवास बा कि जिनगी,महकी गुलाब बनिके,
दुखवा में कबहूँ रउवा,तनी मुस्कुरा के देखीं।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

पचलत्ती राग में आन्हा टोपी छंद(भोजपुरी कविता)

राम राम सब मित्र लोगन के!एगो रचना रउवा अदालत में हाजिर बिया।अच्छा लागे त टिप्पणी जरूर करीं।ई रचना कवनो नेता पर सटीक बईठ जाव त संजोग समझेम।

पचलत्ती राग में आन्हा टोपी छंद
...........................................

लागे गलियन के लोफर ह।
घुनल गहूँ के चोकर ह।
भासा ओकर लागे जइसे,
ई नेता ना ह जोकर ह।

ह महाबेहाया लतखोरी।
हर बात में ओकरा बरजोरी।
दिल से भड़भड़िया टीना ह।
पर मन से बहुत कमीना ह।

ई हरबोलिया पिल्ला झबरा ।
ह एक लमर बड़का लबरा ।
सुअर के लागे छौना ह।
खटमल से भरल बिछौना ह।

ई पीटउर नाल नागाड़ा ह।
मरखाह भईंस के पाड़ा ह।
ह ई जबान के फटफटिया।
राखेला सोंच सदा घटिया।

बकलण लइकन के बप्पा ह।
खानदानी चोर उचक्का ह।
ई लूटतंत्र के अगुआ ह।
असली चरित्र में ठगुआ ह।

केतना चारा ई खाय गईल।
ई हवालात घुमि आय गईल।
असली घर एकर जेल हवे।
पर राजनीति के खेल हवे।

अपहरण लूट के धंधा बा।
हर कांड में एकर कंधा बा।
भलही रउवा ना पतियाएब।
आईं बिहार समझि जाएब।

मीडिया के रोज घघोंटेला।
पीछे से लेकिन पोटेला।
घूरा पर जमल लमेरा ह।
असली भेड़ी के भेड़ा ह।

सुशासन के ई दुस्सासन।
देला बस जहरीला भासन।
बमलेट बहेंगवा बदजुबान।
खाला खैनी,कचरेला पान।

ई अपराधिन के ह चाचा।
दुश्मन के खा जाला काँचा।
मत समझीं सीमित बिहार तलक।
चेला फइलल तिहाड़ तलक।

ई बहुत भाग्य के चाँण हवे।
सत्ता में बईठल साँढ़ हवे।
ह जाति समर्थक ई नेता,
ओही के लाभ अभी लेता।

ह ई बिहारियन के कलंक।
मारे इज्जत पर रोज डंक।
भैसासुरन के नेता ह।
पड़वन के बहुत चहेता ह।

हो गईल बहुत हल्ला गुल्ला।
कबले चाँपी ई रसगुल्ला।
भौंकत कुक्कुर ई तबे डरी।
काला सम्पति पर लट्ठ पड़ी।

तबही बिहार के न्याय मिली।
जब जेल में जाके प्याज छिली।
हे ईश्वर कब उ दिन आई।
परिवार सहित अंदर जाई।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।

अरे नाली के कीड़े!..... बंद कर दे..... बदज़ुबानी,
आशा है कि..... गंदी बात करना .......रोक देगा।
माँ को डायन,......सेना को .....तू रेपिस्ट कहता है,
लिया दिल से ..किसी ने,तो...उसी दिन...ठोक देगा।।

(जन मानस की प्रतिक्रिया)

डॉ मनोज कुमार सिंह

गज़ल

वंदेमातरम्!मित्रो!एक गीतिका प्रस्तुत है।स्नेह सादर अपेक्षित है।

टूट जाऊँगा,ऐसा प्रण नहीं हूँ।
मैं हूँ पानी,कोई दर्पण नहीं हूँ।

खुद को ढूढ़ो तो,मैं मिल जाऊँगा,
कोई खारिज हुआ,मैं क्षण नहीं हूँ।

मैं हूँ धारा मुहब्बत की,नदी की,
डूबकर देखना,कृपण नही हूँ।

तुम हो तूफान,पत्थर नींव का मैं,
उड़ा दोगे,धूलों का कण नहीं हूँ।

मैं हूँ खुश्बू,कुचल कर देख लेना,
जहर के साँप का,मैं फण नहीं हूँ।

प्रेम की रागनी से,संचरित मैं,
शांति का पर्व हूँ,कोई रण नहीं हूँ।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दो दोहे

वन्दे मातरम्! मित्रो!दो दोहे हाजिर हैं।

मेरी नजरों में सदा,होता वहीं महान।
मातृभूमि पर कर सके,न्यौछावर जो जान।।

कैसे दूँ शुभकामना,जिनके लाल शहीद।
घर अयूब,फैयाज के,कौन मनाए ईद।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।आप सभी की टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

किसको फिक्र है मेरी कि जिसकी फिक्र करूँ।
अपनी तनहाइयों में खुद से उसका जिक्र करूँ।
फिर भी रहते हैं बहुत लोग ग़मज़दा मुझमें,
उनके दुख दर्द से कैसे ये मन बेफिक्र करूँ।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

"दलितों का हक सवर्ण नहीं ,दलित ही मार रहे"

वन्दे मातरम्!मित्रो! आज मेरा एक आलेख हाजिर है।आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।कृपया पढ़ने के बाद ही लाईक,शेयर या टिप्पणी करें

"दलितों का हक सवर्ण नहीं ,दलित ही मार रहे"
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जिस दिन
नौकरियों में योग्यता (औचित्यपूर्ण)को
वरीयता मिल जायेगी,समझ लो उसी दिन
उसी की कमाई से अयोग्यता(अनौचित्यपूर्ण) भी
सुखी जीवन जीने लगेगी।
जैसे बढ़िया मकान बनाने के लिए
एक अच्छे इंजीनियर और कारीगर की
तलाश रहती है,
मरीज के लिए अच्छे डॉक्टर,गाड़ी के लिए
एक कुशल और प्रशिक्षित चालक...
यानी हर जगह हर क्षेत्र में एक अच्छे,कार्यकुशल
और बेहतर व्यक्ति की तलाश रहती है
जो समस्याओं का चुटकी में निदान कर दे।
लेकिन सियासी दाँवपेंच ने
कुर्सी और सत्ता प्राप्ति के लिए
लोकतंत्र का नकली दुहाई देकर
अयोग्यता को लादने का काम किया है।
अयोग्य नेता हो या अधिकारी या कोई कर्मचारी
वह कभी भी समाज को
बेहतर नहीं दे सकता।
वैसे योग्यता किसी जाति,धर्म की बपौती नहीं होती,
जैसे गरीबी जाति पूछकर नहीं आती।
आज देश जिस दौर से गुजर रहा है,
उसमें आरक्षण का सबसे बड़ा दुश्मन
योग्यता ही तो है,
जिसमें योग्य अयोग्य है
और अयोग्य को योग्य के स्थान पर
जबरदस्ती थोपा जा रहा है।
आज योग्यता को जाति के पचड़े में फँसाकर केवल और केवल सियासत की जा रही है।

निःसंदेह
ज्योतिराव फुले, गुरूघासीदास, रैदास, कबीरदास, रविदास, डॉ. भीमराव अम्बेडकर,
जगजीवनराम, पलवांकर बालू
अपनी मेहनत, काबिलियत से
समाज में पथप्रदर्शक रहे
और उनका ध्येय केवल और केवल
दलित उत्थान ही रहा,
लेकिन समय बीतने के साथ
अब ऐसा कोई भी नहीं है।
अब सभी दलितों के हिमायती बन राजनीति कर दलितों को केवल मोहरा बना
अपनी-’अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने में लगे हुए है। आज दलितों के सबसे बड़े दुश्मन ब्राह्मण या सवर्ण नहीं
बल्कि विगत् 60 वर्षों में
तेजी से उभरता दलितों के मध्य
एक आभिजात्य वर्ग हो गया है
जिसमें कलेक्टर, डॉक्टर, प्रोफेसर,
इंजीनियर एवं ऊंचे पदों पर बैठे लोग हैं
जो मुख्य धारा में कभी के आ चुके हैं
और अब वास्तविक दलितों के हकों पर
डाका डाल रहे हैं।
आज अनुसूचित जाति एवं
अनुसूचित जनजाति का
एक सुविधा सम्पन्न वर्ग बन गया है
इसीलिए आज सभी नैतिक एवं
अनैतिक तरीके से फर्जी प्रमाण पत्रों के सहारे
आसानी से शासकीय नौकरियां पा रहे हैं।
अब तो वर्तमान में उच्च जातियों वाले सरनेम
जैसे शर्मा, वर्मा, ठाकुर एवं सिंह भी
लिखने लगे है।
कलेक्टर, डॉक्टर, इंजीनियर
एवं अधिकारियों के बच्चों को अब
आरक्षण की क्या आवश्यकता है। ये सब
समाज की मुख्य धारा में आ चुके है।
अब ये लोग
वास्तविक दलित बच्चों का हक
मार रहे हैं।
इसके लिए अति दलितों को
पुनः एक नया आंदोलन चलाकर
इन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना होगा।
बाबा भीमराव अम्बेडकर की मंशानुसार
10 वर्ष के पश्चात् आरक्षण की स्थिति को
रिव्यू किया जाना था
जो नहीं किया गया? आखिर क्यो?

विगत् 60 वर्षों में 10 वर्ष के अंतराल में
कितने दलित मुख्य धारा में आए
एवं कितने रह गए का रिव्यू क्यों नहीं किया गया? आखिर किसकी जवाबदेही बनती है।
सूचना का अधिकार के तहत् केन्द्र एवं राज्य शासन से जनता पूछ सकती हैं?

डॉक्टर, कलेक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर
एवं अन्य ऊँचे प्रशासनिक पदों पर बैठे लोगों को
दलित आरक्षण से बाहर रखा जाए
एवं दस्तावेज तैयार किया जाये।
मध्यमवर्गीय दलित एवं
अति दलितों को चरणबद्ध तरीके से
सुविधा प्रदान कर मुख्य धारा में लाने का
टारगेट समय सीमा द्वारा
दृढ़ विश्वास के साथ निश्चित् करें
एवं पालन न करने वालों को
कड़ा दण्ड भी दिया जाये।
उस समय सीमा का भी सर्व सम्मति से निर्धारण हो जिसके तहत् आरक्षण को
पूर्णतः समाप्त कर
एक विकसित समाज का निर्माण हो
जिसे समय-समय पर न्यायपालिका भी कहती रहती है।
विचारों में दृढ़ता
एवं राजनीतिक स्वार्थ को परे रख
स्वस्थ्य समाज के निर्माण में विकास के लिए सभी
एकजुट हों।
लेकिन राष्ट्रपति के चुनाव में देखा जा सकता है कि जाति पाति की राजनीति में कितना जहरीला असर है। इसके बिना सत्ता की सीढ़ियां चढ़ना आसान नहीं।
इनका दलित,उनका दलित!आखिर दलित किस सोपान पर पहुँचे कि वह सामान्य हो जाय।अम्बेडकर ब्राह्मणी से शादी करने के पश्चात भी दलित रहे और मीरा कुमार कोईरी(OBC) से शादी से शादी करके भी दलित हैं।

अंत मे बकौल सुधा राजे -
"मीरा कुमार ने जूते छीले ??चमड़ा पकाया ?शौच उठाया ?गोबर कूड़ा साफ किया ?गली झाड़ी ?कभी नीचे धरती पर बैठना पड़ा ?कभी दरवाजे पर बाहर रहना पड़ा ?कभी किसी ने जूठन दी उतरन दी ?कभी अस्पृश्यता के कारण अलग बैठना रहना पड़ा ?

तो वे दलित कैसे हो गयीं ??
दलित माने डाऊन ट्रोडन !!और गाड़ियों की फौज के बीच कोई कोई दलित कैसे रह गया ,,,,,,,,,यानि अगली सदी से अगली सदी के बादशाह तक दलित ही रहेगे??"

यानी इस कैटेगरी के अन्य इसी स्तर के लोग किस पद पर पहुँचने के बाद सामान्य जाति के हिस्सा बन सकेंगे।
आखिर कब तक?

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

चारासन में है छिपा,ललुआसन का राज।
बुरा कर्म कर पा लिया,कुर्सी,सत्ता ताज।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

चारासन में है छिपा,ललुआसन का राज।
बुरा कर्म कर पा लिया,कुर्सी,सत्ता ताज।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!विश्व योग दिवस की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ।

योग से श्वास पर सन्तुलन कीजिए।
मुट्ठियों में जरा अपना मन कीजिए।
स्वस्थ तन मन अगर चाहिए आपको,
तो सतो गुण सदा आचरन कीजिए।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक सामयिक दोहा हाजिर है।

आज नशेड़ी दौर का,देखा अद्भुत मेल।
कंधों पर लाशें लिए,खेलै किरकिट खेल।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक सामयिक दोहा हाजिर है।आपका  स्नेह सादर अपेक्षित है।

जेट उतारे थे अभी,सड़कों पर श्रीमान।
वहीं दिखाते फिर रहे,गड्ढे आज निशान।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक दोहा हाज़िर है।अच्छा लगे तो टिप्पणी अवश्य करें।

मत कुपात्र को दीजिये,शिक्षा,भिक्षा,दान।
पाकर भी करता सदा,दाता का अपमान।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

आलेख

वंदे मातरम्!मित्रो! जिस देश मे श्रद्धा को मानसिक अंधता,नम्रता को कमजोरी समझा जाए और मनुष्य की योग्यता का अपमान किया जाए,उस देश को गर्त में जाने से कोई नहीं बचा सकता।तथाकथित आधुनिकता की बुद्धिजीवी तबेलों का चाल,चरित्र,चेहरा धीरे धीरे सामने आ चुका है।महास्वार्थी परिवेश का नियमन किया जा रहा है।यूज एन्ड थ्रो का अस्वस्ति आचरण रग रग में पैवस्त किया जा रहा है।रिश्तों में जोंक और खटमल के रक्तचूषक प्रहसन जारी हैं।ढकोसलों और ढिमचिक प्रोपगैंडा का बाजार गर्म है।सियासत संसद से सड़क तक निर्लज्जता की निर्वस्त्र नर्तकी बन चुकी है।अधर्म ही धर्म ,कुकर्म ही सुकर्म के पर्याय बन चुके हैं।अनीति का ऐसा दबदबा है कि नीति,सड़क पर किसी ट्रक के चक्के के नीचे आए किसी आवारा कुत्ते की किकियाहट भर लगती है,जिसकी सड़क की अदालत में कोई सुनवाई नहीं होती। देश में अचानक देशद्रोही दुःशासनों की संख्या बढ़ गई है,जो माँ भारती के चीरहरण में सतत् प्रयत्नशील हैं।अब जन कृष्ण को माँ भारती की प्रतिष्ठा बचाने के लिए आगे आना होगा और अपने ही मंत्र -"यदा यदा हि धर्मस्य,ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य,तदात्मानं सृजाम्यहम्।" को चरितार्थ करना होगा।आसुरी शक्तियों का समूलोच्छेद करने के लिए "शठे शाठयम् समाचरेत्" का नित्य पाठ जरूरी है।तभी मनुष्यता के बीजमंत्र श्रद्धा,नम्रता और योग्यता का संरक्षण संभव है।हमारा लक्ष्य 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम!' हो।

डॉ मनोज कुमार सिंह

शेर

वन्दे मातरम्!

जो चहकते थे(?),अभी कल तक हमारे मुल्क में,
जाने उनका क्या छिना,अगलगी करने लगे।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

आलेख (भोजपुरी में)

सगरी मित्र लोगन के राम राम !

अपना समाज मे रउवा अपना आसपास में देखब त रोज मिले वालन में भाँति भाँति के लोग लउकेले,ओही तरे फेसबुक पर भी एकर भरमार बा।ओकर रूप जइसन हम जानि पवले बानी,उ हे तरह से बा-

1-पर्यवेक्षक- जे हर बेकती आ घटना संबंधित पोस्ट के बड़ा धेयान से देखेलें,पढ़ेलें।

2-समीक्षक-जे देखि के कि का सही आ का गलत बा
सोंचि के बतावेलें।

3-तर्की -जे आपन सोच के सामने वाला के बतावलें ।

4-वितर्की-सामने वाला जवन कहिहें उनकर बात काटि के हमेसा कुछ अलगे बतइहें।

5-कुतर्की-जे खाली अपने बात के साँच साबित करे खातिर जवन मन मे आई उहे बोलिहें, कब तक बोलिहें कवनो ठेकान नईखे।

वईसे आपन आपन सोच आ ओकरा अनुसार सबके बोले के आजादी बा।जेकरा जवन कहेके बा उ कहबे करी।कबो कबो रउवा देखब कि जेकरा के कुछ रोके के प्रयास कईल जाला त उ ओतने बढ़ बढ़ के बोले लागेला, आ रउवा खुदे अपना के ना सम्हरनी त बकबक बढ़ जाला।सामने रहला पर हाथापाई के भी नौबत आ सकेला।जय हो फेसबुक कि अमित्र या ब्लॉक के ऑप्शन देके बहुते सब झगड़ा से बचा लेहलS।
ओही लेखा टैगासुर लोगन से भी रच्छा कर।
डॉ मनोज कुमार सिंह

गज़ल

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक ग़ज़ल हाजिर है।अच्छी लगे तो आप अपनी टिप्पणी से ऊर्जा जरूर दीजिये।

बनाना मत कभी भी,ऐ खुदा!मगरूर मुझको।
तू रखना जिंदगी भर,आदमी भरपूर मुझको।

अगर सच बोलने से,मैं अकेला पड़ गया तो,
अकेला ही चलूँगा,शर्त ये मंजूर मुझको।

समंदर की अतल,गहराइयों का हूँ चहेता,
नहीं होना हिमालय-सा,कभी मशहूर मुझको।

मैं दर्पण हूँ दिखाता हूँ, यूँ चेहरों की हकीक़त,
मेरी फ़ितरत है ये,रख पास या रख दूर मुझको।

झुकी है कब फ़कीरी,वक्त के आगे बता दो,
डराने के लिए तू,मूर्ख-सा मत घूर मुझको।

डॉ मनोज कुमार सिंह

जाति विमर्श..

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज कबीर को साक्षी मानकर अपना  एक विचार रख रहा हूँ ।इससे सहमत होना या न होना आपका अधिकार है।

कबीरदास कहते हैं-

जाति न पूछो साधु की,पूछ लीजिए ज्ञान।

संविधान कबीर के कथन के ठीक उल्टा सरकारी सेवाओं में पूछता है-
तुम्हारी जाति क्या है?
तुम्हारा धर्म क्या है?

ज्ञान गया तेल लेने।

अब समझ मे नहीं आता कि कबीर सही कह रहे हैं या संविधान।

जबकि कबीर एक मौलिक कवि,समाज सुधारक और आला दर्जे के संत थे,और संविधान दुनियाभर के संविधानों का अधिकतर कॉपी पेस्ट।
अब आप ही बताएँ कि
जाति,धर्म की बात करना सही है या ज्ञान की ?

जाति,धर्म को वरीयता मिलनी चाहिए या ज्ञान को?

क्योंकि कुछ मुफ्तखोर लोगों ने स्वार्थ में बेशर्मी की इतनी मोटी खाल अपने उपर ओढ़ रखी है कि उनपर वक्रोक्ति का कोई असर ही नहीं पड़ता।कुछ बातें तो उनके समझ मे भी नहीं आतीं,उस पर भी भौंकना नहीं भूलते।
एक बात बहुत मार्के की कही गई है कि जिस देश मे पुस्तकें फुटपाथ पर और जूते शोरूम में सजाकर रखी जाएं तो देश को अधोगति की ओर जाने से कोई नही रोक सकता।बिहार में सभी विद्यार्थी फेल हो रहे हैं और इधर 8वी फेल को डॉक्टरेट की उपाधि दी जा रही है। वाह !

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वन्दे मातरम्!कबीर जयंती की शुभ कामनाएँ!

फिर आना इस देश मे,लेकर सच के तीर।
तब तक हम झूठे सही,खुद को कहें कबीर।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वंदे मातरम्! मित्रो!एक दोहा हाजिर है।

सत्ता पाने की ललक,में कैसे हैवान।
केरल में गोवध किया,एमपी में किसान।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वंदे मातरम्!मित्रो! युगबोध से लबरेज़ एक मुक्तक हाजिर है।आप सभी की टिप्पणियाँ सादर अपेक्षित हैं।

वृद्ध पिता नित बेल बजा,बेटे के कमरे में आता,
जबसे उसने अफसर होने का,एहसास कराया है।
बचपन भूल गया लगता,माँ बाप ने जब उसकी खातिर,
कितने मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारों में शीश झुकाया है।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गज़ल

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक ताजा गजल हाजिर है।

बहुत कच्ची है,कविता।
फिर भी सच्ची है,कविता।

हृदय में ज्यों मचलती,
नन्हीं बच्ची है,कविता।

छंद के मानकों पर,
होती अच्छी है,कविता।

भाव की पीठिका पर,
शब्द शक्ति है कविता।

चिकोटी काटती सी,
मधुर सखी है,कविता।

हृदय को बाँध लेती,
रस की रस्सी है,कविता।

अचानक बरस जाती,
भाव-वृष्टि है,कविता।

डॉ मनोज कुमार सिंह

क्षणिका

वंदे मातरम्!मित्रो!एक क्षणिका हाजिर है।

वे बेटे
अधिकतर
गुंडे मवाली हो गए,
जिनके बाप
नेताओं की
बंदूकें ढोते रहे।
चढ़े कुछ
सियासत की
हत्यारी बलिवेदी पर,
बचे परिवार में जो,
जिंदगी भर
रोते रहे।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

यथायोग्य कार्य व्यवस्था ही मानवीय न्याय है(आलेख)

वंदे मातरम्! मेरे ही एक पोस्ट पर किसी को दिया गया जवाब।आपकी टिप्पणी सादर आमंत्रित है।

यथायोग्य कार्य व्यवस्था ही मानवीय न्याय है।
............................................................

क्या देश मे यथायोग्य कार्य व्यवस्था नहीं होनी चाहिए?राजकिला ही नहीं हमारा आपका घर भी मजदूर के सहयोग से  बनता है,लेकिन जो मजदूर होता है वह बालू गारा मिलाता है और राजमिस्त्री को देता है।राजमिस्त्री इंजीनियर के नक्शे के अनुसार ईट जोड़ता है।घर की पुताई रंगाई कोई और करता है।लेकिन केवल पुताई वाले से कहा जाए कि तुम ईंट जोड़कर मकान बनाओ जबकि उसको पुताई के अलावा और कुछ नही आता।और अगर वह काम करेगा भी तो अनुभव और अज्ञानता में गड़बड़ी होने की आशंका क्या नहीं रहेगी?वैसे योग्यता का कोई पैमाना नही बात सकता लेकिन जो जिस कार्य मे दक्ष (योग्य)है उसे उसमे वरीयता मिलनी चाहिए।योग्यता जाति पूछकर नहीं आती।वह कहीं भी किसी भी जाति धर्म,परिवार,व्यक्ति का हिस्सा हो सकती है। हाँ जो लोग अत्यंत गरीबी और भुखमरी के सचमुच शिकार हैं ,लाचार हैं,अपंग है,बेसहारा हैं,शोषित वंचित हैं उनके लिए
सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि उक्त लोगों की पीड़ा और कष्ट को कैसे दूर किया जाय और सहायता कर स्वावलंबी बनाया जाय।रोगी को दवा जरूरी है ।स्वस्थ होने के बाद कोई डॉ उसे वहीं दवा खाने के लिए क्या कह सकता है?नहीं न! उसी तरह जो लोग आर्थिक और सामाजिक स्तर पर उन्नति कर चुके हैं उन्हें उस कोटे से हटा देना चाहिए जिससे वास्तविक  गरीब और जरूरतमंद व्यक्ति को लाभ मिल सके।अगर ब्राह्मण ठाकुर का लड़का जूता बनाने लायक है तो उसे वहीं काम करना चाहिए और कोई दलित(राजनीतिक शब्द)का लड़का संस्कृत पर आधिकारिक ज्ञान रखता है तो उसे प्रोफेसर बनाया जाय।और यही योग्यता का सम्मान भी है।लेकिन केवल किसी भी तरह लाभ पाने के लिए योग्य व्यक्ति को यथोचित काम न मिले तो समाज मे असंतोष तो बढ़ेगा ही।जब इस देश को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया गया है तो हर नागरिक समान अधिकार संविधान में देने की बात जरूर की गई है जिसमे वोट करने का भी अधिकार है लेकिन 18 वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति वोट नही कर सकता।अगर समानता की बात की जाय तो 130 करोड़ के देश मे मात्र सवा करोड़ लोग ही आयकर देते हैं और साढ़े तीन करोड़ लोग बस दायरे में आते हैं।टैक्स तो सभी को देना चाहिए था?लेकिन नही देते हैं।अधिकार समानता की तरह ही कर्त्तव्य समानता होनी चाहिए।इसी सवा करोड़ के टैक्स से देश चलता है और शेष लोग बिना कुछ देश को दिए लाभ उठाते हैं।अपने यहाँ घर मे भी एक कमाता है पाँच बैठकर खाते हैं लेकिन हम प्रश्न नही करते।क्योंकि खाने वाले वे लोग हैं जो अभी काम करने लायक नहीं होते ।और जब वे कार्य करने लायक हो जाते हैं तो उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे अब कोई काम धाम करेंगे और परिवार में सहयोग करेंगे।मेरा जो मन्तव्य उसे स्पष्ट किया हूँ कि यथायोग्य कार्य मिले तो देश बहुत ज्यादा प्रगति करेगा।जो योग्य नही हैं उन्हें सुविधा और प्रशिक्षण देने चाहिए जिससे वह स्वावलंबी बन सके।यही मानवीय न्याय है।

मुक्तक

वंदे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित कर रहा हूँ।स्नेह सादर अपेक्षित है।

जिनकी आँखों में ,मोतियाबिंद है पूर्वाग्रहों का,
लाखों सूरज भी उसे ,उजाला दे नही सकते।
मज़हब जाति में जो,बाँट देते हैं गरीबों को,
कभी इंसानियत को वे,निवाला दे नही सकते।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

आह्वान गीत -नित्य जड़ विचार पर

वंदे मातरम्!मित्रो!आज एक 'आह्वान गीत' प्रस्तुत है।रचना पर आप सभी की अधिक से अधिक टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

नित्य जड़ विचार पर,प्रबल प्रखर प्रहार कर।
कठोर कर्म-यज्ञ से,स्वयं में नित सुधार कर।।
                   1
विचर विचार व्योम में,
प्रचंड वेग तुल्य तू।
सिद्ध कर अनंत के,
अनादि सर्व मूल्य तू।
अखंड दिव्य ज्योति से,
मन मणि धवल करो।
धरा तमस से मुक्त हो,
नित नवल पहल करो।
पतझरों की शुष्कता में,स्नेह भर बहार कर।
कठोर कर्म-यज्ञ से,स्वयं में नित सुधार कर।।
                       2
घर नगर प्रदेश में ,
या कहीं भी देश में।
मनुष्यता मिटे नहीं,
रहो किसी भी वेश में।
ब्रह्माण्ड सा बनो कि तुममें,
हों अनेक भूमियाँ।
विराट भव्य भाव से,
रचो नवीन सृष्टियाँ।
प्रणय पुनीत नींव में,घृणा की मत दीवार भर।
कठोर कर्म-यज्ञ से,स्वयं में नित सुधार कर।।
                          3
फैलो सुरभि-से इस तरह,
महक उठे दिशा दिशा।
बरस कि शुष्क पुष्प की,
हरी हो उसकी हर शिरा।
मधुर सरस गुंजार से,
खिला चमन की हर कली।
पलक पर स्वप्न पालकर,
चखो तू प्रेम की डली।
सदा हृदय आकाश में,तू मेघ बन विहार कर।
कठोर कर्म-यज्ञ से,स्वयं में नित सुधार कर।।

डॉ मनोज कुमार सिंह