वन्दे भारतमातरम! मित्रो,राजभाषा कार्यशाला से लौटने के बाद मुझे इसके बारे में जो धारणा बनी है ,वह सही है या गलत मुझे पता नहीं,लेकिन जो मैनें अनुभव किया,उसे मुक्तक के रूप में आपको समर्पित कर रहा हूँ ।आपका स्नेह टिप्पणी रूप में सादर अपेक्षित है-
जबसे हिंदी राजभाषा बन गई।
जैसे सरकारी तमाशा बन गई।
बाबुओं की जेब की धनलक्ष्मी,
और जन-जन की निराशा बन गई।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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