वन्देमातरम् मित्रो!एक समसामयिक ताज़ा ग़ज़ल आप सभी के लिए सादर समर्पित कर रहा हूँ। आपकी टिप्पणी हीं मेरी उर्जा है ,इसलिए आपका अधिक से अधिक स्नेह अपेक्षित है-
ऐसी नीति बनी सरकारी।
होती जिसमें चोर बाजारी।
अब तक तो ऐसा हीं देखा ,
नेता जीता ,जनता हारी।
सांप नेवला लहूलुहान कर,
पैसा,ताली लिया मदारी।
जीवन के सपनों में पग-पग,
मुँह फाड़कर खड़ी लाचारी।
थककर चूर हुई नैतिकता,
जज्बातों का मन है भारी।
बदबूदार सियासत अब तो,
है दिल्ली की राजकुमारी।
राजनीति अनुबंध संधि में,
कुर्सी सबकी बारी-बारी।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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