वन्दे भारतमातरम् !मित्रो!आज एक गजल आपको सादर समर्पित कर रहा हूँ ।टिप्पणी देकर अपने स्नेह से मुझे आप्लावित करें।
सोच ये कैसी घड़ी है।
हरतरफ बस हड़बड़ी हैं ।
कौन सुनता है किसी की,
सबको अपनी हीं पड़ी है।
अजनबी रिश्ते हुए सब,
त्रासदी कितनी बड़ी है।
ख्वाब देकर तोड़ देना,
सरासर धोखाधड़ी है।
हारना भी जिंदगी में,
जीत की पुख्ता कड़ी है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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