वन्दे भारतमातरम !मित्रो,आज एक ताज़ा ग़ज़ल आपकी अदालत में हाज़िर है- आपका स्नेह टिप्पणी के रूप सादर अपेक्षित है-
किसी के दर्द पर जो ,दिल हीं दिल में रो नहीं सकते।
समझ लो जिंदगी में ,वो किसी के हो नहीं सकते।
मुहब्बत जब भी होती है,किसी इंसान से प्यारे,
ऐसे इश्कजादे जिंदगी में सो नहीं सकते।
जिसमें हौसले का नूर हो,ज़ज्बा हो बढ़ने का ,
अंधेरों के बवंडर में,कभी वो खो नहीं सकते।
सियासत गर अराजकता,भगोड़ेपन की दर्पण है,
भगोड़े लोग कालिख को ,कभी भी धो नहीं सकते।
घृणा के बीज के तेज़ाब से,है दिल भरा जिनका,
अमन के फूल धरती पर,कभी वो बो नहीं सकते।
जो खुद बैसाखियों का ,ले सहारा चल रहे प्यारे,
वतन का भार जीवन में,कभी वो ढो नहीं सकते।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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