Friday, May 15, 2015

गज़ल

वन्देमातरम्!मित्रो!आज एक गजल हाज़िर है। अपनी टिप्पणी अवश्य दीजिएगा। सादर प्रस्तुत....

हद से ज्यादा गुजरना, यूँ आसां नहीं।
सबके दिल में उतरना ,यूँ आसां नहीं।

मन के आकाश में ,जब हो गहरा तमस,
रोशनी बन बिखरना ,यूँ आसां नहीं।

सच को सच कह सके, जिंदगी ये सदा,
इन उसूलों पे चलना ,यूँ आसां नहीं।

इश्के-आजार में ,जो भी बीमार है,
फिर से उसका सुधरना ,यूँ आसां नहीं।

वक्त देता है मौक़ा, सभी को मगर,
जो न संभले संभलना ,यूँ आसां नहीं।

(इश्के-आजार- प्रेम का रोग)

डॉ मनोज कुमार सिंह

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