वन्देमातरम् मित्रो!आज एक ताज़ा व समसामयिक गज़ल आपको सादर समर्पित कर रहा हूँ। आप अपनी बहुमूल्य टिप्पणी देकर अपने स्नेह से आप्लावित करें।
नकली चेहरे नकली लोग।
बिना रीढ़ बिन पसली लोग।
किनसे दिल की बात करें,
कहाँ रहे अब असली लोग।
आत्मप्रशंसा में केवल अब ,
बजा रहे कुछ डफली लोग।
दर्पण के चेहरे से डरकर,
करते उसकी चुगली लोग।
मीरा ने जब सच बोला,
बोले उनको पगली लोग।
आज सियासत की नजरों में,
फँसी जाल में मछली लोग।
शहरों में हीं मिल जाते अब,
सभ्य,सुसज्जित जंगली लोग।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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