वन्दे भारतमातरम!मित्रो,आज के हालात पर एक ताजा गजल आपको हाजिर करता हूँ। अगर पसंद आये तो अपनी पसंदगी के साथ टिप्पणी भी अवश्य दीजिये। सदैव की भाँति आपका स्नेह सादर अपेक्षित है.........
आदमी कितना अराजक हो गया।
मुफ्तखोरी का उपासक हो गया।
आदतें जबसे हुईं भस्मासुरी,
स्वार्थ में कितना भयानक हो गया।
त्याग से ज्यादा यहाँ लिप्सा बढ़ी
जिंदगी का लक्ष्य नाहक हो गया।
नागफनियों का चलन जबसे हुआ,
फूल का जीवन विदारक हो गया।
अब तलक जो लूटता था देश को,
देशभक्ति का प्रचारक हो गया।
क्या सियासत हो गई इस दौर की,
नक्सली दिल्ली-सुधारक हो गया।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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