वन्देमातरम मित्रो!आज एक ताजा ग़ज़ल आपकी सेवा में हाजिर है। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है........
छूकर ये क्या जनाब कर दिया ।
पानी भी शराब कर दिया।
अभी तो होंठ से लगाया था,
पावों को बेहिसाब कर दिया।
सच तो सच है ,फिर मत कहना,
महफ़िल में इंकलाब कर दिया।
थी मेरी जिंदगी निःशब्द अब तक,
तुमने पढ़कर ,किताब कर दिया।
तुम्हें क्या दे दिए ,पैंसठ बरस हम,
मिट्टी मुल्क की ,खराब कर दिया।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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