Saturday, August 17, 2013



        दोहे मनोज के ...............
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आज सभ्य इंसान में ,दिखता यहीं उसूल |
पत्थर के गुलदान में ,जस कागज के फूल |


इशरत को बेटी कहे ,मोदी को अवसाद?
बोधगया में कौन है ,बेटी या दामाद ??


आज सियासत खेलती ,खुला-खुला- सा खेल |
देश भक्त को जेल है ,आतंकी को बेल ||


तन कच्छप ,मन शशक सा , इक धीमा इक तेज |
फिर भी जीवन भर चलें ,औसत चाल सहेज ||


जिस बच्चे की पीठ पर ,हो बुजुर्ग के हाथ |
जीवन भर होता नहीं ,बच्चा कभी अनाथ |



बच्चों की मुस्कान में ,बसते जब भगवान |
तब क्यों है इस जगत में ,पत्थर-सा इंसान ||


शब्द-अर्थ दाम्पत्य -से ,जस धरती-आकाश |
दोनों के सहधर्म से ,उपजे भाव प्रकाश ||


आज प्रगति के नाम पर ,कितना हुआ विनाश |
हाँफ रही शोषित धरा ,कांप रहा आकाश ||


तथाकथित कुछ सेकुलर ,देते बस उपदेश |
जातिवाद के नाम पर ,बाँट रहे हैं देश |


जब कटुता की आँच से , ,जलते मन के खेत |
ठूंठा-ठूंठा जग लगे ,जीवन बंजर रेत ||


चोरी मेरा काम है ,चोरी हीं आधार |
जीवन भर करता रहा ,चोरी चुपके प्यार ||



देकर पाने की जहाँ ,मन में जगे विचार |
उसको कह सकते नहीं ,किसी तरह उपकार ||1 ||

अग्यानी ग्यानी बने ,औ ग्यानी विद्वान|
गुरुओं के उपकार से ,जीवन बने महान ||2 ||

पहले रोटी दान कर ,फिर करना तुम प्यार |
शोषित वंचित के लिए ,यहीं बड़ा उपकार ||3 ||

हे भारत के आम जन ,कर दो इक उपकार |
अबकी बार चुनाव में ,चुनो नई सरकार ||4 ||



क्या करना आकाश का ,जहाँ नहीं ठहराव |
उससे अच्छी ये धरा ,जहाँ टिके हैं पाँव |

राजनीति की सोच में ,कब किसकी परवाह |
जनता जाए भाड़ में ,बस कुर्सी की चाह ||

गाँधी जी के नाम पर ,गांधी हुए तमाम |
कुछ तो राज कुमार हैं ,कुछ घूरे के आम ||

वायु ,गगन, धरती मिले ,मिले अनल औ नीर |
पंचतत्त्व ब्रह्माण्ड से ,विरचित सकल शरीर |


नफरत ,कुंठा ह्रदय में ,होठों पे मुस्कान |
कालनेमि -से रूप का ,कैसे हो पहचान ||

नक़ल ,नक़ल में भेद है ,अकल ,अकल में भेद |
नक़ल अकल से जो करे ,पाये जीवन वेद|

ले उधार की रोशनी ,चाँद बना जब ख़ास |
सरेआम करने लगा ,जुगनू का उपहास |

क्रोध ,मोह ,मद लोभ में ,हम इतने मदहोश |
जीवन की लहरें हुईं ,बेवश औ खामोश |

भूख ,प्यास ने बनाया ,हमको महज गुलाम |
इनके अत्याचार ने ,जीना किया हराम |


तुम एसी में बैठकर ,लेते हो आनंद |
हम श्रम-साधक स्वेद से ,लिखते जीवन छंद ||


राजा के दरबार में ,वहीँ लोग स्वीकार |
हाँ में हाँ जो बोलते ,जी हजूर ,सरकार||


बिन तुक की बातें सदा ,देतीं दुख,अवसाद |
जैसे सूअर को कहें ,कुत्ते की औलाद ||

 
नीचे कुल का जनमिया ,करनी भी है नीच |
घृणा त्याग तू बन बड़ा ,प्रेम हृदय में सींच ||


बोलो वन्दे मातरम ,करो राष्ट्र का मान |
तभी शहीदों की धरा ,पाएगी सम्मान ||


लड़का -लड़की मित्रता ,नया चला है ट्रेंड |
बीच सड़क पे बज रहा ,संस्कार का बैंड ||


विश्वासों की नींव पर ,कर पीछे से वार |
कुत्तों ने फिर कर दिया ,शेरों का संहार |

भारत माँ के लाडलों ,तुमको नमन हजार |
फिर आना इस देश में ,करने नव संचार |

सत्ता औ इंसानियत ,कहाँ रहा है मेल |
लाशों पर भी खेलती ,राजनीति का खेल |


ईद ,तीज दोनों मने ,हों सारे खुशहाल |
गले मिलें दिल खोलकर ,निशदिन सालो साल ||


मत्स्य -न्याय में चल रहा ,अब भी शासन चक्र |
सत्ता की नज़रें दिखीं ,कमजोरों पर वक्र ||


जन- सेवा के नाम पर,घोटालों का कंत|
सौ-सौ चूहा हज़म कर , बना हुआ है संत ||


कर्तव्यों के सिर चढ़े ,जब-जब ये अधिकार |
अहंकार का रूप धर ,बने स्वार्थ के यार ||

देश -दहन में सोचना, कितना तेरा हाथ |
चुन चुनकर नेता गलत ,करते देश अनाथ ||



खतरे में हैं बेटियाँ ,फिर भी हम सब मौन |
हैवानों की हवस से ,बता ,बचाये कौन ?


पड़िया जब पैदा भई ,भैंस पुजाती द्वार |
पर बेटी के जन्म पर ,जननी को फटकार ||


लोकशक्ति हीं शक्ति है ,देशभक्ति हीं भक्ति |
संविधान हीं देश का ,धर्मग्रन्थ की सूक्ति ||

संकट में तुम कृष्ण हो ,औ चरित्र से राम |
हे सैनिक !इस देश के ,तुझको करूँ प्रणाम ||


1
गाय ,गीता ,गायत्री ,चलो बचाएं आज |
यहीं देश की अस्मिता ,गौरव,गरिमा ,लाज ||

2
तप,मर्यादा,तेज,यश,मिटते पाय कुसंग |
जीवन की संजीवनी ,संयम ,त्याग ,उमंग ||

3
पतझर तो इक चक्र है ,फरे,झरे ,फल-पात |
जन्म-मरण भी नियति है ,जीवन के सौगात ||

4
बिना कर्म जब फल मिले ,पंथी को भरपूर |
तब क्यों चाहेगा कभी ,फल लागे अति दूर ||

5
कला जिंदगी में हमें ,देती दृष्टि नवीन|
दिशाहीन को दे दिशा ,करती सदा प्रवीन||

6
दीवारों में खिड़कियाँ ,कला दृष्टि की देन |
घुटन भरे माहौल में ,देती है सुख -चैन ||










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