चलो ,......तो फिर चलते हैं |
फिर कभी ,कहीं मिलते हैं |
मुहब्बत ....संभाल के रखना ,
ये यादों में ......पलते हैं |
मोम पिघलते हैं ,मिटते नहीं ,
अक्सर धागे हीं जलते हैं |
रूप पर इतराना ठीक नहीं ,
उम्र ढलान है ,सब ढलते हैं |
भौरों से पूछो उनका मकसद ,
ठिकाना रोज क्यों बदलते हैं ?
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,डॉ मनोज कुमार सिंह
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