सुविधाओं की जिज्ञासा में ज्ञान कहाँ मिलता हैं |
श्रद्धाहीन जगत में अब भगवान् कहाँ मिलता है |
पत्थर पूज रही है दुनिया ,इसका कारण एक यहीं ,
अब दुनिया में पूज्यपाद इंसान कहाँ मिलता है |
हिन्दू ,मुस्लिम ,सिख,ईसाई ,सब मिलते हैं टुकड़ों में ,
पूछ रहा हूँ सबका हिन्दुस्तान कहाँ मिलता है |
जाति-धर्म के घृणा गीत अब मंचों से गाये जाते ,
इंसानी जज्बों का अद्भुत गान कहाँ मिलता है |
शिवि,दधीचि की त्यागमयी,निःस्वार्थमयी इस धरती पर ,
मानवता हित बिना छूट अब दान कहाँ मिलता है |
रावण अब भी सजा रहा है अनाचार की लंका को ,
जला सके जो लंका वो हनुमान कहाँ मिलता है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,डॉ मनोज कुमार सिंह
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