वन्देमातरम मित्रो !आज स्वतंत्रता दिवस पर मैं अपनी एक कविता जो 2/11/1992 को अपने कालेज के दिनों में लिखी थी और कालेज के एक कार्यक्रम में सुनाया था जिसमें एक भ्रष्ट सांसद मुख्य अतिथि पधारे थे |उन्होनें मेरी कविता और जज्बे की तारीफ जरुर की थी , मगर वे भीतर से कसमसा गए थे ,आज यह कितनी प्रासंगिक है आप तय करेंगे ................
नौजवान जाग तू, बुलंद कर आवाज को |
फूंक दे तू जीर्ण-शीर्ण, रूढ़ियों के साज को |
तुम्हीं से आज देश है ,तुम्हीं से आज है जहां |
मगर तेरा पता नहीं ,खो गए हो तुम कहाँ |
बाहुबल प्रशस्त कर, छोड़कर मनौतियाँ |
पुकारता है देश अब, स्वीकार कर चुनौतियाँ|
घोर तम हटा ,डगर दिखा, नया समाज को ||
नौजवान जाग तू ,बुलंद कर आवाज को ||
देश की अखण्डता पे, चल रही हैं आरियाँ |
जल रही कश्मीर में, केशर की सुघर क्यारियाँ |
आग है सुलग रही, गंगो-जमन के रेत में |
आंधियां उठी हुई हैं, पंचनद के खेत में |
हो रहा षड्यंत्र देश, बेचने की आज को |
नौजवान जाग तू, बुलंद कर आवाज को ||
चाहिए नहीं स्वराज ,आज हमें इस तरह |
रो रही मनुष्यता है ,बिलख-बिलख किस तरह |
ब्रह्मपुत्र के सुपुत्र ,रक्त से नहा रहे |
अपने हीं चमन को ,अपने हाथ से जला रहे |
अखंड हिन्द में ये, माँगते हैं किस स्वराज को ?
नौजवान जाग तू ,बुलंद कर आवाज को ||
डाकू औ लुटेरे जब से, नेता बनते जा रहे |
कुकर्म ,बलात्कार जुर्म, नित्य बढ़ते जा रहे |
नारियों पे छूरियाँ ,चमक रहीं अँधेरे में |
लुटती हैं नित्य रात, कट्टे के घेरे में |
हो सके बहन भी तेरी ,लुटे रात आज को |
नौजवान जाग तू बुलंद कर आवाज को ||
विष-वेलि भ्रष्ट तंत्र की ,जड़े यहाँ जमा रहीं |
नौजवां की एकता को, बाँट कर लड़ा रही |
ऐ नालायकों! जगो,अब से भी ज़रा होश कर |
एकता के सूत्र में बंधकर, हृदय में जोश भर |
तभी मिटा सकोगे, भ्रष्ट तंत्र की आवाज को |
नौजवान जाग तू ,बुलंद कर आवाज को ||
नौजवान हो तो कदम ,तू जवानी का बढ़ा |
मातृभूमि के लिए, भेंट अपना सर चढ़ा |
दिन दहाड़े सामने हीं ,क़त्ल हो रहे यहाँ |
बोलता कोई नहीं ,बंद है सबकी जुबां|
कायरों की मंडली है, धिक् है उनकी लाज को |
नौजवान जाग तू ,बुलंद कर आवाज को ||
आज हो रहा यहीं ,राणा ,भरत के देश में |
लूटते लुटेरे राष्ट्र ,रक्षक के वेश में |
हो रहे घोटाले ,प्रतिभूति औ बोफोर्स से |
मुजरिम बच जाते साफ़, मंत्रियों के सोर्स से |
जालिमों के हाथ से, छुड़ा तू तख्तो -ताज को |
नौजवान जाग तू,बुलंद कर आवाज को ||
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,डॉ मनोज कुमार सिंह
नौजवान जाग तू, बुलंद कर आवाज को |
फूंक दे तू जीर्ण-शीर्ण, रूढ़ियों के साज को |
तुम्हीं से आज देश है ,तुम्हीं से आज है जहां |
मगर तेरा पता नहीं ,खो गए हो तुम कहाँ |
बाहुबल प्रशस्त कर, छोड़कर मनौतियाँ |
पुकारता है देश अब, स्वीकार कर चुनौतियाँ|
घोर तम हटा ,डगर दिखा, नया समाज को ||
नौजवान जाग तू ,बुलंद कर आवाज को ||
देश की अखण्डता पे, चल रही हैं आरियाँ |
जल रही कश्मीर में, केशर की सुघर क्यारियाँ |
आग है सुलग रही, गंगो-जमन के रेत में |
आंधियां उठी हुई हैं, पंचनद के खेत में |
हो रहा षड्यंत्र देश, बेचने की आज को |
नौजवान जाग तू, बुलंद कर आवाज को ||
चाहिए नहीं स्वराज ,आज हमें इस तरह |
रो रही मनुष्यता है ,बिलख-बिलख किस तरह |
ब्रह्मपुत्र के सुपुत्र ,रक्त से नहा रहे |
अपने हीं चमन को ,अपने हाथ से जला रहे |
अखंड हिन्द में ये, माँगते हैं किस स्वराज को ?
नौजवान जाग तू ,बुलंद कर आवाज को ||
डाकू औ लुटेरे जब से, नेता बनते जा रहे |
कुकर्म ,बलात्कार जुर्म, नित्य बढ़ते जा रहे |
नारियों पे छूरियाँ ,चमक रहीं अँधेरे में |
लुटती हैं नित्य रात, कट्टे के घेरे में |
हो सके बहन भी तेरी ,लुटे रात आज को |
नौजवान जाग तू बुलंद कर आवाज को ||
विष-वेलि भ्रष्ट तंत्र की ,जड़े यहाँ जमा रहीं |
नौजवां की एकता को, बाँट कर लड़ा रही |
ऐ नालायकों! जगो,अब से भी ज़रा होश कर |
एकता के सूत्र में बंधकर, हृदय में जोश भर |
तभी मिटा सकोगे, भ्रष्ट तंत्र की आवाज को |
नौजवान जाग तू ,बुलंद कर आवाज को ||
नौजवान हो तो कदम ,तू जवानी का बढ़ा |
मातृभूमि के लिए, भेंट अपना सर चढ़ा |
दिन दहाड़े सामने हीं ,क़त्ल हो रहे यहाँ |
बोलता कोई नहीं ,बंद है सबकी जुबां|
कायरों की मंडली है, धिक् है उनकी लाज को |
नौजवान जाग तू ,बुलंद कर आवाज को ||
आज हो रहा यहीं ,राणा ,भरत के देश में |
लूटते लुटेरे राष्ट्र ,रक्षक के वेश में |
हो रहे घोटाले ,प्रतिभूति औ बोफोर्स से |
मुजरिम बच जाते साफ़, मंत्रियों के सोर्स से |
जालिमों के हाथ से, छुड़ा तू तख्तो -ताज को |
नौजवान जाग तू,बुलंद कर आवाज को ||
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,डॉ मनोज कुमार सिंह
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