मुक्तक
तेरी साजिशों का, जिसे भी पता है |
उसे फिर मिटाना, तुम्हारी अदा है |
किसे मैं बताऊँ ,तुम्हारी हकीकत ,
सभी की नज़र में, तू दिखता खुदा है |
मुक्तक
जाति -धर्म में बाँट देश को ,क्यों करते हो हमको आहत |
पैर सलामत वालों को भी देते बैशाखी की राहत |
आज योग्यता अर्थ हीन हो ,रोटी को मोहताज हो गई ,
वोट की खातिर कुर्सी करती कितनी गन्दी आज सियासत |
No comments:
Post a Comment