दोहे मनोज के ............
1
पैंसठ बरसों बाद भी ,आज़ादी बस नाम |
डॉलर के दरबार में ,रुपया अभी गुलाम ||
2
बेलगाम टीवी हुआ ,कौन करे कंट्रोल |
भौड़ेपन की आग में ,मूत रहा पेट्रोल ||
3
सोसल साइट्स पर सदा ,आक्रामक व्यवहार|
पर टीवी व्यभिचार पर ,नरम रही सरकार ||
4
हिंसा औ अश्लीलता ,विविध भाँति के रोग |
चटखारे ले बाँटता ,टीवी का उद्योग ||
5
चेन्नई एक्सप्रेस पर, खर्चे शतक करोड़ |
मगर प्याज के नाम पर, रोने की है होड़ ||
6
मैं लड़ता हूँ भूख से ,मुझसे लडती प्यास |
मैं दोनों के बीच में ,झेल रहा संत्रास |
7
चमक रहे हो खुद यहाँ ,और सभी द्युतिहीन |
कैसे मानू मैं तुम्हें ,असली कला-प्रवीन ||
8
भावों की बरसात से ,भारी मन के पाँव |
सृजन- प्रसव की चाह में ,ढूढ़े सुन्दर छाँव ||
9
अखबारों की सुर्खियाँ ,समाचार का सार |
मानवता के रक्त से, सना पड़ा अखबार |
10
सिसक रहीं है हड्डियां ,पड़े गटर में बंद |
शोकाकुल परिवेश में, कौन सुनाये छंद |
11
गोदें सूनी हो रहीं ,सपने सारे ध्वस्त |
आज दरिंदे कर रहे, मानवता को पस्त ||
12
मानवता थर्रा गई ,देख क्रूर यह खेल |
क्या कभी मुर्झाएगी ,यह हिंसा की बेल ||
13
रक्षाबंधन पर्व पर ,सबको नमन हज़ार |
बहनों के रक्षार्थ हम ,सदा रहें तैयार ||
14
जाति-धर्म से श्रेष्ठ है ,बहनों का सद् प्यार |
अदभुत ,पावन पर्व है ,राखी का त्यौहार ||
15
सत्य ,ज्ञान, गुरु ,आत्म से ,जब बंधता इंसान |
बनकर रक्षा कवच ये ,देते जीवन दान ||
16
मनमोहक ,दिलकश अदा ,ठगने का हथियार |
है अनीति के शास्त्र पर ,टिका हुआ बाज़ार |
17
औरत ,इज्जत ,प्रेम हो ,या रिश्तों के बीज |
बाज़ारों के दौर में ,बिकती है हर चीज ||
18
किसको कैसे लूटना ,कुत्सित लिए विचार |
दुनिया में हमको सदा ,सिखलाते बाज़ार ||
19
टीवी के बाज़ार में ,औरत इक उत्पाद |
चटखारे ले बेचता ,नंगेपन की खाद |
20
अदभुत है बाज़ार का ,अर्थशास्त्र उद्योग |
स्वार्थपूर्ति बस ध्येय है ,लाभांशों का योग ||
21
कैसा तेरा न्याय है ,कैसा तू हमदर्द |
जुल्म ढा रहा संत पर ,कैसा है तू मर्द ||
22
सत्ता का अपराध से ,ये कैसा अनुबंध |
अपराधी खुला घूमें ,संतों पर प्रतिबन्ध ||
23
कान्हा जी के जन्म पर ,खुशियाँ मिलें अपार |
चहुँ दिशि सुख औ शान्ति हो ,घर-घर बरसे प्यार ||
24
प्रेम ,भक्ति सद्कर्म का ,देने को सन्देश |
कृष्ण लला तू आ जरा ,फिर से मेरे देश ||
25
संकट में है देश का ,धर्म ,न्याय औ संत |
हे कान्हा आकर करो ,फिर दुष्टों का अंत ||
26
एक कंस वध के लिए ,लिए कृष्ण अवतार |
आज हज़ारों कंस हैं ,कौन करे संहार ||
27
क्षमा करो हे निर्भया ,दिला सके ना न्याय |
तेरे संग कानून भी ,किया बहुत अन्याय ||
28
मेरे देश महान का ,ये कैसा क़ानून |
घोर क्रूर हैवान का ,माफ़ कर दिया खून ||
29
जिसको फाँसी चाहिए ,पाया कुछ दिन जेल |
फिर खेलेगा निकलकर ,बलात्कार का खेल ||
30
कानूनी ये फैसला ,दिला दिया अहसास |
अब रक्षा के नाम पर ,न्याय मात्र बकवास ||
31
इज्जत खो बिटिया मरी ,झेल-झेल संत्रास |
देख हश्र क़ानून का ,उठा आज विश्वास ||
32
मुल्ला ,बाबा ,पादरी ,को किसने दी छूट |
सदा धर्म की आड़ में ,सबकी इज्जत लूट ||
33
मिडिया ,राहुल ,सोनिया ,से लेकर के बैर |
बाबा आसाराम सुन ,नहीं तुम्हारी खैर ||
34
ज्ञान ,आचरण ,प्रेम के,सबसे बड़े फ़क़ीर |
भारत की तस्वीर में ,तुलसी सूर ,कबीर ||
35
पाक साफ यदि है हृदय ,तो जंगल क्या जेल |
संत कभी डरता नहीं ,नहीं रचाता खेल ||
36
संतों की पहचान है ,सहज ,सरल व्यवहार |
सदाचरण की जिंदगी ,जीव मात्र से प्यार ||
37
कुछ ढोंगी , बहुरुपिया ,कालनेमि के बाप |
पकड़ संत का रूप वे ,बाँट रहे हैं पाप ||
38
विश्वासों के मूल पर ,करते वहीँ प्रहार |
जिनको जीवन में कभी ,मिला नहीं है प्यार ||
39
लोभ,मोह ,ईर्ष्या घृणा ,अपनाकर अपमान |
दया ,प्रेम ,करुणा ,विनय ,भूल गया इंसान |
40
दुनिया में उस रूप की ,कैसे हो पहचान |
भीतर से तो भेड़िया ,ऊपर से इंसान ||
41
पत्थर का पूजन किया ,धर ईश्वर का ध्यान |
नहीं मिला जब जगत में ,पूज्यपाद इंसान ||
42
गुरु का आशीर्वाद हीं ,ईश्वर का वरदान |
बिनु गुरु के संभव नहीं ,ईश्वर की पहचान ||
43
गुरु शिष्य की परंपरा ,पावन औ प्राचीन |
लेकिन अर्वाचीन में बेबस और मलीन||
44
गुरु किरिपा देता हमें ,ज्ञान पुष्प का दान |
जब चरणों में शीश हो ,मन में हो सम्मान |
45
गुरु शिक्षक कुछ हीं बचे ,रहते सदा सहाय |
बाकी सब करने लगे ,शिक्षा का व्यवसाय ||
46
अथक परिश्रम सृजन से ,मिलता सुन्दर अर्थ |
गुरुओं के सद्प्रेम से, जीवन बने समर्थ ||
47
घोर तिमिर संसार में ,शिष्य जहां फँस जाय |
अज्ञानी गुमराह को ,गुरु हीं राह दिखाय ||
48
मनसा ,वाचा ,कर्मणा ,हो हिंदी उत्थान |
तभी एक होगा यहाँ ,पूरा हिन्दुस्तान ||
49
हिंदी मानस में बसे ,विविध रूप भगवान |
तुलसी ,सूर ,कबीर हों ,या रहीम ,रसखान |
50
इक भाषा ,इक राष्ट्र हित ,चलो करें संघर्ष |
हिंदी जनभाषा बने ,यहीं सही उत्कर्ष ||
51
मुख में हिन्दुस्तान है ,दिल में है इंग्लैण्ड |
हिन्दी के हर गीत पर ,अंग्रेजी का बैंड ||
52
दिल्ली मैंने देख ली ,तेरे मन की खोंट |
अंग्रेजी को ताज है ,औ हिंदी को चोट ||
53
हिंदी भारत की रही , जन जन की पहचान |
धड़कन अब भी राष्ट्र की ,आन, बान औ शान ||
54
धान पौध -सी बेटियाँ ,दो खेतों की योग |
इसको कहें वियोग या ,इक सुन्दर संयोग ||
55
बिछड़न,लिपटन औ रुदन ,समझ पुराने ख्याल |
मुस्काती अब बेटियाँ ,जाती हैं ससुराल ||
56
बेटी दुःख की खान है ,बहू स्वर्ण की सेज |
ऐसी हीं कुछ सोच है ,लेकर विषय दहेज़ ||
57
बाप पढ़ाया भेज कर ,बेटे को परदेश |
अफसर बनकर बाप को ,देता अब निर्देश ||
58
रोगी ढूंढें वैद्य को ,विद्याभ्यासी ज्ञान |
ज्ञानी ढूंढें तत्त्व को ,वेश्या जस धनवान ||
59
बेशर्मी के दौर में, जीना हुआ मुहाल |
नाक कटाकर भी यहाँ ,रहते कुछ खुशहाल ||
60
जीवन की अनुभूति का ,सुन्दर सत्य प्रमाण |
है मकसद साहित्य का ,हो सबका कल्याण ||
61
स्वतः मुक्त होता हृदय ,मिटते सब अवसाद |
जब रचना करने लगे ,जीवन से संवाद ||
62
एक तरफ साहित्य में ,फैला ब्राह्मणवाद |
दलितवाद दूजै तरफ ,लेकर खड़ा विवाद ||
63
राजनीति में फँस गई कविता की पहचान |
जोड़ -तोड़ में कवि लगे ,कैसे बनें महान ||
64
पुरस्कार साहित्य का ,हुआ जुगाड़ी खेल |
अबुआ झबुआ पा रहे ,लगा ,लगा कर तेल ||
65 पढ़ा रहे हैं आज वो ,हमें प्रगति के पाठ |
जिसने जीवन भर पढ़ा ,सोलह दूनी आठ ||
66
शर्म ,हया, शालीनता , औरत के श्रृंगार |
लेकिन अर्वाचीन में ,हैं तीनों बेकार |
67
कामुकता ,अश्लीलता ,का लेकर हथियार |
औरत को अब बेचता ,मीडिया का बाज़ार |
68
घृणा ,द्वेष अन्याय का ,चलो करें संहार |
प्रेम ,त्याग ,श्रद्धा ,विनय ,का लेकर हथियार |
69
विश्व विजय करता वहीँ ,जिसके मन में प्यार |
इसके आगे सब यहाँ ,फींके हैं हथियार ||
70 गाँधी फिर आओ यहाँ ,तू अपने इस देश |
सत्य ,अहिंसा ,प्रेम का, लेकर नव सन्देश |
71
गाँधी तेरे नाम पर ,गाँधी हुए तमाम |
कुछ तो राजकुमार हैं ,कुछ घूरे के आम |
72
ये कैसा आदर्श है ,कैसा राष्ट्र -चरित्र |
रुपये में हम बेचते ,गाँधी जी के चित्र |
73
कर्म और ईमान का ,अद्भुत रहा मिसाल |
लाल बहादुर नाम था ,भारत माँ का लाल |
74 दो कौड़ी का आदमी ,होता जब मशहूर |
अहंकार ,मद में सदा ,रहता निश्चित चूर ||
75
राजनीति की ओट में ,किया मुल्क बदहाल |
गदहों की औलाद ने ,पहन शेर की खाल ||
76
कालेधन की माँग पर ,इक पर अत्याचार |
इक बाबा के ख्वाब पर ,झपट पड़ी सरकार ||
77
ये कैसा व्यवहार है ,हे शोभन सरकार |
क्यों भ्रष्टो को दे रहे, आज स्वर्ण उपहार ||
78
जिनके बल पर धर्म की , महिमा रही अनंत |
वहीँ आज इस देश में, शोषित हैं अब संत ||
79
संकट में यह देश है ,मान रहा हूँ आज |
सस्ता अब भी आदमी ,औ महँगा है प्याज ||
80
राजनीति जब -जब रही ,वंशवाद के हाथ |
शहजादों के देश में ,जनता हुई अनाथ ||
81
भूख, गरीबी, दर्द का ,आर्तनाद चहुँओर |
तुम कुर्सी पर बैठ कर ,होते रहे विभोर ||
82
पप्पा ने सत्ता दिया ,होके भाव विभोर |
पर चच्चा मिल कर रहे ,कुर्सी को कमजोर ||
83
बनी बनाई राह पर ,चलना है आसान |
राह बना कर जो चले ,वहीँ मर्द इंसान ||
84
सीधी -सादी जिंदगी ,जीता जो इंसान |
जीवन में होता नहीं ,उसका कुछ नुकसान ||
85
सही -गलत का आकलन, करता जो इंसान |
वहीँ बना पाता सदा ,अपनी इक पहचान ||