एफ डी आइ के बहाने देखिये ,
गिरगिटों की चांदियाँ होने लगी हैं ।
क्या सही है क्या गलत मतलब नहीं ,
स्वार्थ में गुटबंदियां होने लगी है ।
भाव से मृत शब्द का पत्थर लिए ,
काव्य में तुकबन्दियाँ होने लगी है।
इस सियासत का करिश्मा देखिये ,
राम रावण संधियाँ होने लगी है ।
राजपथ की रौनकें जबसे बढ़ीं ,
गुम यहाँ पगडंडियाँ होने लगीं है ।
गिरगिटों की चांदियाँ होने लगी हैं ।
क्या सही है क्या गलत मतलब नहीं ,
स्वार्थ में गुटबंदियां होने लगी है ।
भाव से मृत शब्द का पत्थर लिए ,
काव्य में तुकबन्दियाँ होने लगी है।
इस सियासत का करिश्मा देखिये ,
राम रावण संधियाँ होने लगी है ।
राजपथ की रौनकें जबसे बढ़ीं ,
गुम यहाँ पगडंडियाँ होने लगीं है ।
आम जन के दर्द को महसूस करके ,
आज गीली पंक्तियाँ होने लगीं हैं ।
.....................डॉ मनोज कुमार सिंह
.....................डॉ मनोज कुमार सिंह
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