Monday, December 10, 2012

एफ डी आइ के बहाने देखिये ,


गिरगिटों की चांदियाँ होने लगी हैं ।


क्या सही है क्या गलत मतलब नहीं ,


स्वार्थ में गुटबंदियां होने लगी है ।


भाव से मृत शब्द का पत्थर लिए ,


काव्य में तुकबन्दियाँ होने लगी है। 


इस सियासत का करिश्मा देखिये ,


राम रावण संधियाँ होने लगी है ।


राजपथ की रौनकें जबसे बढ़ीं ,


गुम यहाँ पगडंडियाँ होने लगीं है ।



आम जन के दर्द को महसूस करके ,


आज गीली पंक्तियाँ होने लगीं हैं ।

.....................डॉ मनोज कुमार सिंह

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