तेरी सोच का इतना बड़ा कायल हुआ हूँ
मैं
इस जिंदगी में तेरा अमल सोच रहा हूँ |
कीचड़ भरे माहौल को तब्दील कर सकूँ ,
हर सांस में खुशबु का कँवल सोच रहा
हूँ \
हर तिफ्ल की मुस्कान से दुनिया बची हुई ,
मुस्कान है खुदा का फज़ल सोच रहा हूँ |
वैशाखियों के बल पे मंजिल जो पा गया ,
कितना है जिंदगी में सफल सोच रहा हूँ|
जो दे सके चुनौती हैवां को सरेआम ,
इन्सां की हुकूमत की दखल सोच रहा हूँ |
कुछ दे सकूँ दुनिया को इस दौर में 'मनोज' ,
मैं प्यार की खुशरू -सी ग़ज़ल सोच रहा हूँ |
..................डॉ मनोज कुमार सिंह
No comments:
Post a Comment