Monday, December 10, 2012


तेरी सोच का इतना बड़ा कायल हुआ हूँ मैं
 इस जिंदगी में तेरा अमल सोच रहा हूँ |

कीचड़ भरे माहौल को तब्दील कर सकूँ ,
हर सांस में खुशबु का कँवल सोच रहा हूँ \

हर तिफ्ल की मुस्कान से दुनिया बची हुई ,
मुस्कान है खुदा का फज़ल सोच रहा हूँ |

वैशाखियों के बल पे मंजिल जो पा गया ,
कितना है जिंदगी में सफल सोच रहा हूँ|

जो दे सके चुनौती हैवां को सरेआम ,
इन्सां की हुकूमत की दखल सोच रहा हूँ 

कुछ दे सकूँ दुनिया को इस दौर में 'मनोज,
मैं प्यार की  खुशरू -सी ग़ज़ल सोच रहा हूँ |
..................डॉ मनोज कुमार सिंह 

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