दुनिया के आँगन में देखा ,मित्र यहाँ भरपूर मिले |
कुछ तो अपने से लगते हैं ,अधिक स्वार्थ में चूर मिले |
रिश्तों को डसते रहते हैं ,आस्तीन के सांप यहाँ
विश्वासों की ह्त्या करते,
कुछ तो भस्मासुर मिले |
शठे शाठ्यम समाचरेत का जबसे मैंने पाठ किया ,
नकली चेहरे वाले तब से मुझसे काफी दूर मिले |
.......................डॉ मनोज कुमार सिंह
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