पाला था जिनको, कितने अरमान सजाकर ,
करता नहीं जो अपने, माँ -बाप का लिहाज़ ।
बेशर्मियों के दौर में, मैं क्या कहूँ जनाब ,
मिलता नहीं यहाँ अब, किसी नाप का लिहाज़ ।
पल-पल में डँसने वाले, इंसान से अधिक ,
अच्छा हीं नहीं बेहतर, है साँप का लिहाज़ ।
घुघरु ने पाई शोहरत, महफ़िल में सरेयाम,
पाँवो ने किया जबकी, हर थाप का लिहाज़।
रिश्तों को आजमाना आसान है 'मनोज',
रिश्तों को पर निभाना, है ताप का लिहाज़।
.........................डॉ मनोज कुमार सिंह
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