जीकर बासी जिंदगी ,जीवन भर इंसान ।
रटे - रटाये ज्ञान पर ,करता है अभिमान ।
करता है अभिमान,क्रोध मन में उपजाता ।
खोकर धैर्य ,विवेक ,वो आखिर में दुःख पाता ।
कहै मनोज कवि सत्य ,अहं है खुद की फाँसी ।
नहीं मिले आनंद जिंदगी जीकर बासी ।।
.................................डॉ मनोज कुमार सिंह
.................................डॉ मनोज कुमार सिंह
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उस नज़र की क्या कहें जिसमें हया नहीं ।
उस हृदय की क्या कहें जिसमें दया नहीं ।
बेशर्मियों के दौर में बेदर्द-सा इंसान ,
बदला है बस ईमान औ कुछ भी नया नहीं ।
कण-कण में खुदा है हमें जबसे हुआ अहसास ,
मंदिर औ मस्जिदों में तब से गया नहीं ।
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अब काफी मशहूर हो रहे, सारे चोर उचक्के लोग ।
सज्जन तो गुमनाम हो गए, नाम कमाए छक्के लोग ।
एक तरफ सुविधाओं में पलते कुत्ते
दरबारों में ,
एक तरफ सडकों पर खाते फिरते रहते
धक्के लोग ।
श्रद्धा औ विश्वास देश की सदियों से पूजित नारी,
आज मसाला विज्ञापन की देख हुए भौचक्के लोग ।
संस्कार का दीपक फिर भी बचा हुआ है
कवियों में ,
कविताओं से फैलाते हैं प्रेम
ज्योत्स्ना पक्के लोग ।
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आओ कुछ हम काम की बातें करें ।
सुबह की औ शाम की बातें करें ।
जिंदगी का क्या भरोसा ,इसलिए ,
हम खुदा के नाम की बातें करें ।
फूल, चिड़िया, पेड़, बच्चों की हँसी,
प्यार के पैगाम की बातें करें ।
जब तलक इंसानियत खतरे में है ,
ना कभी आराम की बातें करें ।
कुर्सियों से अब भरोसा छोडिये ,
खुद हीं हम आवाम की बातें करें ।
गिरगिटों के रंग को पहचान कर ,
राष्ट्रहित परिणाम की बातें करें।
नग्नता-से पूर्ण फैशन त्यागकर,
फिर से राधे-श्याम की बातें करें ।
हिन्दू मुस्लिम एकता के वास्ते ,
तुलसी औ खैयाम की बातें करें ।
चढ़ सके फाँसी यहाँ अफज़ल गुरु ,
हर गली कोहराम की बातें करें ।
...........डॉ मनोज कुमार सिंह
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