Thursday, April 19, 2012

  आसमां से उतरकर, जब छत पे आती चांदनी |
   देखकर तनहा मुझे, है मुस्कुराती चांदनी ||

   दुबली लड़की की हंसीं को, देखकर ऐसा लगा ,
   पंखुरी में मूंग की है, खिलखिलाती चाँदनी |

   नग्न पाँवों पर खड़े हो, याचना करते रहे ,
   रातभर पहलू में मेरी, ठहर जाती चांदनी |

   रातभर धोती रही, शबनम से वो दुधिया बदन ,
   सुबह की बाला किरण-सी, झिलमिलाती चांदनी |

   है तमन्ना एक यहीं बस, सर टिकाकर वक्ष पर ,
   मेरे कुरते के बटन कुछ, टांक जाती चांदनी |

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