Thursday, April 5, 2012

                 दोहे मनोज के ..........

        दर्पण में चेहरा दिखे ,कंप्यूटर में यार ।
        घर बैठे हीं देख लो ,यह पूरा संसार ।।

        शहर देश फिरता रहा ,मिला नहीं जब ठाँव।
        वर्ल्ड वेव पर ढूढ़ता ,फिर से अपना गाँव ।।
   
        गिनती करते थक गए , फिर भी पूर्ण न काम ।
        कंप्यूटर ने दे दिया ,क्षण भर में परिणाम ।।


         आज प्रगति की दौड़ में ,बहुत हुए बदलाव ।
         कंप्यूटर ने कर दिया, दुनिया को एक गाँव ।।


          बदल रही है मान्यता ,बदल रहे हैं लोग ।
          जब कंप्यूटर बन गया ,शिक्षा का उद्योग ।।

           अभी खड़े हैं रूस में ,तत्क्षण हैं भोगाँव।
           माउस के निर्देश पर ,भाग रहे हैं पाँव।।

           आखर पढ़ने चल पड़े ,ले माउस का तीर ।
            मसि कागद बिन पढ़ रहे ,अब भी यहाँ कबीर ।।


            चिंतन की चित साधना ,कंप्यूटर का ज्ञान ।
            साहचर्य क्षणभर मिले ,ख़त्म करे व्यवधान ।।














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