Sunday, April 15, 2012

               |5|

 आदमी हैवान होता जा रहा है ।
     रोटियाँ जबसे मशीनी खा रहा है ।।
   
   प्यार के एतबार का चारा दिखाकर ,
 आदमी हींआदमी को खा रहा है ।
      
       मिट्टियों के गाँव मिटटी में मिले सब ,
  पत्थरों का शहर बसता जा रहा है ।

    नाम लिखी रोटियाँ  ,भेजी  खुदा ने ,
    देखिये वह शख्स तनहा खा रहा है ।

मूल्य टूटते जा रहे हैं जिंदगी के ,
      मोम -सा मन शुष्क हो पथरा रहा है ।



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