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आदमी हैवान होता जा रहा है ।
रोटियाँ जबसे मशीनी खा रहा है ।।
प्यार के एतबार का चारा दिखाकर ,
आदमी हींआदमी को खा रहा है ।
मिट्टियों के गाँव मिटटी में मिले सब ,
पत्थरों का शहर बसता जा रहा है ।
नाम लिखी रोटियाँ ,भेजी खुदा ने ,
देखिये वह शख्स तनहा खा रहा है ।
मूल्य टूटते जा रहे हैं जिंदगी के ,
मोम -सा मन शुष्क हो पथरा रहा है ।
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