Monday, December 31, 2012


अपनी मंजिलअपने सपने ,सोये-सोये मत देखो ।
अपनी दुनिया,  अपनी किस्मत ,खोये-खोये मत देखो ।
निर्भयता के साथ बढ़ो तुम, अपनी मंजिल पाने को ,
अपनी खुशियाँ, अपना  जीवन,रोये-रोये मत देखो ।
........................डॉ मनोज कुमार सिंह 


 मधुर -मधुर होते हैं  रिश्ते ,
खट्टे हों तो दिल में रिसते ।
रिश्ते खुशबूदार बनें तो ,
महके जीवन के गुलदस्ते ।
रिश्ते प्रेम नगर में मिलते ,
सबसे सरस मुलायम सस्ते ।
रिश्तों में  विश्वास रहे  तो ,
कटता जीवन हँसते -हँसते ।
..........डॉ मनोज कुमार सिंह 


फिर से दुर्गा का यहाँ अवतार हो ।
फिर से दनुजों का यहाँ संहार हो ।
मातृशक्ति  हस्त में फिर से यहाँ ,
चूड़ियों की जगह अब तलवार हो ।
लेखनी वह धन्य है जिसमें सदा ,
जागरण का आमरण हुँकार हो ।
माँ, बहन, बेटी भी होती नारियाँ ,
उनकी श्रद्धा, स्नेह का श्रृंगार हो ।
आत्मा क्यों मर रही इंसान की ,
सोचिये ,किस तरह का आचार हो ।
गंदे मन को साफ़ कर के प्रण करें ,
अब ना कोई दामिनी शिकार हो ।
फैसला ना दे सके संसद अगर ,
फैसला कर किसकी अब सरकार हो ।
......................डॉ मनोज कुमार सिंह 

अखबारों की सुर्खियाँ ,समाचार का सार ।
आज दामिनी रक्त से ,सने पड़े अखबार ।

मानवता थर्रा गयी ,देख क्रूर यह खेल ।
क्या कभी मुरझाएगी ,विष -हिंसा की बेल ।

सिसक रही है आत्मा ,पड़ी हृदय में बंद ।
शोकाकुल परिवेश में ,कौन सुनाये छंद ।
...........................डॉ मनोज कुमार सिंह

पाला था जिनको, कितने अरमान सजाकर ,
करता नहीं जो अपने, माँ -बाप का लिहाज़ ।
बेशर्मियों के दौर में, मैं क्या कहूँ जनाब ,
मिलता नहीं यहाँ अब, किसी नाप का लिहाज़ ।
पल-पल में डँसने वाले, इंसान से अधिक ,
अच्छा हीं नहीं बेहतर, है साँप का लिहाज़ ।
घुघरु ने पाई शोहरतमहफ़िल में सरेयाम
पाँवो ने किया जबकीहर थाप का लिहाज़।
रिश्तों को आजमाना आसान है 'मनोज',  
रिश्तों को पर निभाना, है ताप का लिहाज़।
.........................डॉ मनोज कुमार सिंह 

Saturday, December 22, 2012


छोटी सी औकात है लेकिन, झूठी शान दिखाते हैं ।
आत्मप्रकाशन करने में हीं,  सारा समय बिताते हैं।
फेसबुक पर विज्ञापन का ,है एक ऐसा दौर चला ,
चार कवि मिलकर आपस में, विश्व कवि बन जाते हैं।
सूरदास ,तुलसी ,कबीर को, पढ़कर कुछ परदेश गए ,
बाज़ारों में रख कर उनको, डॉलर खूब कमाते हैं ।
मौलिकता का मूल सिपाही ,धूल चाटता सड़कों पर,
चोरों को देखा मंचों पर, गा-गाकर छा जाते हैं ।
...............................डॉ मनोज कुमार सिंह 

अब हो गया है आदमी, दूकान की तरह ।
बिकता है जहाँ प्यार भी, सामान की तरह ।
बेईमानियों का व्याकरण ,अब आचरण हुआ ,
ओढ़ा है जिसे आदमी, ईमान की तरह ।
पहचानना भी मुश्किल, मुखौटों के दौर में ,
दिखता है भेड़िया भी, इंसान की तरह ।
जो देश अपनी बेटियों को, लाश बना दे,
वह देश नहीं देश है, हैवान की तरह ।
खादी औ खाकियों से, विश्वास उठ चुका ,
लगती हैं राष्ट्र भाल पे, अपमान की तरह ।
है अजनबी सा जी रहा ,दीवार ओढ़कर ,
अपने हीं घर में आदमी मेहमान की तरह ।
..........................डॉ मनोज कुमार सिंह 

Monday, December 10, 2012

एफ डी आइ के बहाने देखिये ,


गिरगिटों की चांदियाँ होने लगी हैं ।


क्या सही है क्या गलत मतलब नहीं ,


स्वार्थ में गुटबंदियां होने लगी है ।


भाव से मृत शब्द का पत्थर लिए ,


काव्य में तुकबन्दियाँ होने लगी है। 


इस सियासत का करिश्मा देखिये ,


राम रावण संधियाँ होने लगी है ।


राजपथ की रौनकें जबसे बढ़ीं ,


गुम यहाँ पगडंडियाँ होने लगीं है ।



आम जन के दर्द को महसूस करके ,


आज गीली पंक्तियाँ होने लगीं हैं ।

.....................डॉ मनोज कुमार सिंह
आत्म प्रदर्शन जरुरी हो गया ,



आज विज्ञापन का ऐसा दौर है ।



जिंदगी के मायने समझे बिना ,



जी रहे हम जिंदगी कुछ और हैं ।



...........डॉ मनोज कुमार सिंह
अब काफी मशहूर हो रहे, सारे चोर उचक्के लोग ।
सज्जन तो गुमनाम हो गए, नाम कमाए छक्के लोग ।

एक तरफ सुविधाओं में पलते कुत्ते दरबारों में ,
एक तरफ सडकों पर खाते फिरते रहते धक्के लोग ।

श्रद्धा औ विश्वास देश की सदियों से पूजित नारी,
आज मसाला विज्ञापन की देख हुए भौचक्के लोग ।

संस्कार का दीपक फिर भी बचा हुआ है कवियों में ,
कविताओं से फैलाते हैं प्रेम ज्योत्स्ना पक्के लोग ।
................................डॉ मनोज कुमार सिंह
                          [1]
           कुत्ते की पूंछ और
           आदमी का ईमान
          अगर नहीं डुले तो ????
       डंडे पड़ते हैं । 
                [२]
           जब भी वो रखते हैं
       अपने हाथ मेरे उपर
       मुझे लगता है 
       की मैं aaag हूँ      
                   
                        रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ---

                       


                           अब राम का पद चिह्न , मिटाने  लगे कुछ लोग   ।
                            रावन की फिर से लंका , बसाने लगे कुछ लोग ।। १।।


                           संगीत इस तरह कुछ , अंदाज़े-बयां कुछ ,
                           अब राष्ट्रगान पॉप में , गाने लगे कुछ लोग ।।२।।


                          अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का लाभ उठाकर ,
                          गाँधी  को गालियों से सजाने लगे कुछ लोग ।।३।।


                          टूजी हो ,कालाधन हो,या आदर्श मामला ,
                          सच्चाईयों पे पर्दा, लगाने लगे कुछ लोग ।।४।।


                       

                       
                                   








  

        मधुरिम है भाषा हिंदी 

भारत के उज्ज्वल ललाट पर, है गौरवगाथा हिंदी |
आशा और विश्वास देश की, मधुरिम है भाषा हिंदी ||

तमिल, तेलगु, मलयालम ,कन्नड़ में दक्षिण बोले |
बंगाली उडिया असमी में, पूर्वोत्तर मुँह खोले |
पश्चिम में पंजाबी औ  गुजराती रंग दिखाये|
महाराष्ट्र  की ठेठ मराठी, मुग्धा- सा इठलाये |
पर सबको जो जोड़ चुकी है, जन-जन की भाखा  हिंदी ||
भारत ...............
खुसरो के जीवन में आई, बनकर एक पहेली |
भारतेंदु के लघु जीवन में, बनकर रही सहेली |
जिस भाषा को तुलसी ने, जीवन का राग बनाया |
सूरदास की मधुर ध्वनी ने, दुनिया को सरसाया |
हर कोने को झांक चुकी जो, जीवन की परिभाषा हिंदी |
भारत ...................

गुरुनानक, रैदास ,मलूका या कबीरा की बानी |
इनके आगे दुनिया की,  भाषा भरती हैं पानी |
मीरा की वीणा में हिंदी, बोले राजस्थानी |
ब्रज के रस में भींग-भींग कर ,बन गई ब्रज की रानी |
दुखियारों की जिजीविषा है, कमजोरों की आशा हिंदी ||
भारत ...........

रीतिकाल की मृगनैनी, नावक के तीर चलाये |
कवि बिहारी ,घनानंद ,बोधा तक को ललचाये|
 शिवाबवानी भूषण की ये, कलिका- सी किलकारे |
छत्रसाल की प्रलै-भानु, दुश्मन का सीना फाड़े |
दुर्गा औ लक्ष्मी की भाषा, बनती नहीं तमाशा हिंदी |
भारत ...........................

महावीर ने धोया पोंछा ,दिया था नया कलेवर |
संस्कार से युक्त हो चली,छायावादी के घर |
श्रद्धा है ये जयशंकर की ,औ पंत की प्राण-प्रिया |
निराला की शहजादी ये ,महादेवी की प्रणय -कथा |
बच्चन की मधुशाला में, प्याले की मधुराशा हिंदी ||
भारत ..............................

युग की गंगा है केदार की ,औ त्रिलोचन की धरती |
दिनकर की हुंकार बनी ये, रेणु की गाथा परती|
युगधारा, पथराई आँखें ,हज़ार-हज़ार बांहों वाली |
नागार्जुन की तुमने कहा था ,सतरंगे पंखों वाली |
माखन की कविता में जैसे, पुष्प की अभिलाषा हिंदी ||
भारत .........................

पराधीन भारत में ये ,जन-जन की मनुहार बनी |
आज़ादी के दीवानों की  ,सपनों की हथियार बनी |
चिड़िया बोली, पत्ते बोले ,गईया बोली, बच्चे बोले |
अंग्रेजों भारत को छोड़ो,समझो मत हमको तुम भोले |
भारत के कण -कण में गुम्फित ,बलिदानों की भाषा हिंदी ||
भारत .................................

रामचंद्र की रस-मीमांसा, नन्द दुलारे की प्यारी |
प्रेमचंद की धनिया है तू औ नगेंद्र की हितकारी |
मुक्तिबोध की अतिकल्पना ,राजेंद्र की हंस-प्रणय |
धर्मवीर की कनुप्रिया तू ,सर्वेश्वर की लोक विनय |
नीरज की आँखों से बहती, अद्भुत है भाषा हिंदी ||
भारत ............................

आग- राग में तुम्हें पकाकर ,दुष्यंत चमकाया |
लीलाधर ने पुत्र भाव  से, दिल से  तुझे  लगाया |
भगवत रावत जीवन भर, तुझको कभी न छोड़ सका |
सोमदत्त था तेरा पुजारी, पर  बीच राह में छोड़ चला |
ग़ज़ल  बनी ,नवगीत बनी ,हर गीत की भाषा है हिंदी ||
भारत .......................................................




चेतना की आग कैसे ,जिंदगी गरमाएगी |
नींद में चलते रहे तो, सुबह कैसे आएगी ||
समय तो बलवान है, पर उससे भी आगे की सोंच ,
इंतजारी  में  रहे तो , जिंदगी सड़ जाएगी ||
फूल की खुश्बू क्षणिक है , शब्द में  खुश्बू रचो |
शब्द की खुश्बू सदी तक, हर दिशा महकाएगी |

आज़ादी का दिन' आज़ाद' ने, दी अपनी कुर्बानी से |
अंग्रेजों को धूल चटाई  ,वन्देमातरम  वाणी से ||

कोटि नमन उस माँ को जिसने, 'आज़ाद' रूपी संतान दिया |
जिसने अपनी मातृभूमि हित ,अपना सर्वस्व बलिदान किया |
प्राण फूंक दी कण-कण में ,अपनी अलमस्त रवानी से |
अंग्रेजों को धूल चटाई  ,वन्देमातरम  वाणी से ||

दुश्मन के चंगुल में फंसकर, होश गँवाया कभी नहीं |
वक्ष पर गोली खुद खाई ,पर पीठ दिखाया कभी नहीं |
दिया सबक औ मिसाल सबको अपनी चढ़ी जवानी से ||
अंग्रेजों को धूल चटाई  ,वन्देमातरम  वाणी से ||

मील का पत्थर बनकर छाया ,इतिहास के पन्नों में |
चमक रहा वो आज भी नभ में ,लिपटे रश्मि के गहनों में |
लहर रहा जो आज तिरंगा ,बोया जिसने खूं-पानी से |
अंग्रेजों को धूल चटाई  ,वन्देमातरम  वाणी से ||

भारत माँ का लाल वतन की खातीर, अपनी जां दी |
अपने बलबूते पर जिसने , पूर्ण ब्रिटिश सल्तनत हिला दी
सबक लीजिये लेना हो तो शेखर  की मर्दानी से |
अंग्रेजों को धूल चटाई  ,वन्देमातरम  वाणी से ||

सबको याद दिलाने आया ,आज तिरंगा के नीचे|
'आज़ाद 'के इस पौधे को ,आओ  मिलजुल करके सींचें |
अब परतंत्र न होगा भारत ,कसम लें आज भवानी से |
अंग्रेजों को धूल चटाई  ,वन्देमातरम  वाणी से ||


इन्सां को किसने हिन्दु- मुसलमां बना दिया |
फिर नफरतों से आग का तूफां बना दिया |

इन्सां  को बनाना  था  इनसान  दोस्तों ,
ज़रा सोंचिये कि हमने उसे क्या बना दिया |

प्रगति की अंधी दौड़ में भूलने लगे रिश्ते ,
निज स्वार्थ ने इनसान को ,हैवां बना दिया |

इनसान को इनसान बनाने के वास्ते ,
धरती पे ख़ुदा ख़ुद को हीं, एक  माँ बना दिया

रोते हुए बच्चे की ,उस जिद के सामने ,
कविता को अपनी हमने ,खिलौना बना दिया |

सच का सूरज संग जोलेकर चलेगा मान्यवर |
तपिश में उसकी सदा  खुद भी जलेगा मान्यवर ||
सदियों का अनुभव ,जो बोया है वहीँ तू काटेगा |
नागफनियों से सदा काँटा  मिलेगा मान्यवर |
जिसके दिल में पत्थरों- सी नफरतें बैठी हुईं,
ख़ाक उनसे प्यार का तोहफा मिलेगा ,मान्यवर |
आईना सच बोलता है और ये भी जानता ,
सको तोहफे की जगह, चाँटा  मिलेगा मान्यवर |
धर्म से निरपेक्ष होकर ,सत्य से जो कट गया ,
झूठे सपनों से नहींकुछ भी मिलेगा ,मान्यवर |

रेत और सीमेंट का सम्बन्ध एक -सत्रह का ज,
कब तलक उस पुल काजीवन चलेगा मान्यवर |

दूध तो है दूधअपना खूं पिला के देख लें ,
आस्तीं का साँप तो केवल डंसेगा मान्यवर |





नफरतों की आग दिल में, औ जुबां पे प्यार देखा |
आचरण में अहं पाले, शख्स  का व्यवहार देखा |
इंतजारों के शहर में, ख्वाब सारे ध्वस्त करते,  
इश्तेहारों से सुसज्जित, स्वार्थ का बाज़ार देखा ||

मेरे १५ प्रतिनिधि हायकु आपको समर्पित ...........


उषा काल की
ओस नहायी कली
लगती भली|

उपवन- सा
लहराए जीवन
फूलों- सा मन |

घोर अँधेरे
में हीं दिखते, अच्छे
चाँद-सितारे |

मचले नैन
तुझ बिन सजना
दिल धड़के |

चहके मन
झूमे तन, पाकर
अपनापन |

जज्बातों पर
दर्द उगे तो होता
सत्य-सृजन |

अखंड भक्ति
शुचिता,समर्पण
की अभिव्यक्ति |

सृजन -धर्म
मौलिक चिंतन का
नूतन मर्म |

ज्ञान की गंगा
बहा तू पुण्य कर
मन की धरा |
१०
श्रृंगारी रूप
प्रेम की कटोरी में
मक्खनी धूप |
११
जवान बेटी
खा जाती माँ का चैन
पिता की नींद |
१२
लड़की होती
है धान की पौध, रोपी
जातीं दुबारा |
१३
सोन चिरैया
बेटियाँ, पुल बनीं
परिवारों की |
१४
जीवन भर
बनते रहे मीत
पीड़ा के गीत |
१५
प्रतिज्ञा कर
बना रहूंगा सदा
व्यक्ति प्रखर |