Friday, July 1, 2016

अंतर्गीत

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक अंतर्गीत हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।

गीत
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दर्द हमारे दिल से उठकर,
जब अधरों तक आते हैं।
शब्द मिले तो अनुभव अपना,
गाकर सदा सुनाते हैं।।टेक।।

धुआँ धुआँ कुछ फैला हो,
जब अंतर्मन की घाटी में,
बीज तड़पते हैं भावों के,
शुष्क हृदय की माटी में,
बरसाकर नयनों से बादल,
हम जीवन सरसाते हैं।
शब्द मिलें तो.............

जीवन सागर में सुख दुःख की,
लहरें निशदिन लहराएँ।
चंचल मन के पंछी उनमें,
कभी डूबे औ उतराएँ।
संघर्षों की नाव चढ़े जो,
वहीं मुक्तिपथ पाते हैं।
शब्द मिलें तो.........

सजा कल्पना के पृष्ठों को,
इंद्रधनुष के रंगों में।
बहा सदा सपनों की नदियाँ,
मधुरिम भाव तरंगों में।
चलो तमस की बस्ती में इक,
अरुणिम सुबह उगाते हैं।
शब्द मिलें तो..........

डॉ मनोज कुमार सिंह

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