वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक हाजिर है।अगर अच्छा लगे तो अपनी टिप्पणी अवश्य दें।
कमी इक है कि पत्थर हूँ,कभी गलता नहीं हूँ।
मगर इंसान के ईमान-सा,बदलता नहीं हूँ।
मुझसे मंदिर या मस्जिद,चर्च ,गुरुद्वारा बना कुछ भी,
सियासत की तरह मैं,फर्क कर छलता नहीं हूँ।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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