दिखता हूँ तुझे कुछ भी,मैं दूर से भले, लेकिन हूँ मैं इक,अदना इंसान दोस्तों। जब काटता पर झूठ की,सच की कटार से, चिढ़ते हैं मुझसे सारे शैतान दोस्तों।।
शब्दार्थ-(पर-पंख) डॉ मनोज कुमार सिंह
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