हृदय की सेज पर विराजमान मेरी माँ !
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माँ!
जब से तू आई हो
कविता के मंदिर में ,
कविता के शब्द
स्नेहसिक्त हैं |
अनुभूतियाँ -
कोमल हो गई हैं ,
बचपन के स्नेहिल मैदान पर-
उग आये हैं मुस्कान के दूब ,
फ़ैल रही है लालिमा -
ठंडे परिवेश के नीले क्षितिज पर ,
डूब रहे हैं हम आकंठ ,
ममता की पवित्र नदी में ,
ढह रहे हैं दिवार ,विचार भ्रम के ,
हृदय की सेज पर विराजमान मेरी माँ !
मेरे अंतरतम में
आशीर्वाद का कुछ बूँद ऐसा टपका
कि मुझमें ताजिंदगी
आदमी बने रहने की तमीज़ बनी रहे |
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माँ!
जब से तू आई हो
कविता के मंदिर में ,
कविता के शब्द
स्नेहसिक्त हैं |
अनुभूतियाँ -
कोमल हो गई हैं ,
बचपन के स्नेहिल मैदान पर-
उग आये हैं मुस्कान के दूब ,
फ़ैल रही है लालिमा -
ठंडे परिवेश के नीले क्षितिज पर ,
डूब रहे हैं हम आकंठ ,
ममता की पवित्र नदी में ,
ढह रहे हैं दिवार ,विचार भ्रम के ,
हृदय की सेज पर विराजमान मेरी माँ !
मेरे अंतरतम में
आशीर्वाद का कुछ बूँद ऐसा टपका
कि मुझमें ताजिंदगी
आदमी बने रहने की तमीज़ बनी रहे |
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