जहाँ हर मंच से नेता ,यहीं जुमला सुनाता है |
कभी गाँधी कभी सुभाष से, नाता बताता है |
नहीं सम्बन्ध होता कोई , उनका उन शहीदों से ,
उन्हीं के नाम पर फिर भी, वह रोटी कमाता है |
के गर मारो उसे जूते,फिर भी बेशरम हंसता,
पहनकर वहीँ जूता, सभा से वह खिसक जाता है |
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