Monday, July 9, 2012

थके -थके पाँव 

लौटा हूँ अभी अभी,
मैं अपने गाँव-
थके-थके पाँव ||

रिश्तो की रुसवाई ,
फेंक रही झाग |
आसमान धधक रहा, 
उगल रहा आग |
कागज की छतरी है,
कैसे मिले छाँव |

शहराती मोर मिले ,
मोरों के शोर मिले |
सजे -धजे अजनबी से,
चेहरे हर ओर मिले |
याद आई आँगन के,
कौओं की काँव|

शब्द -पुष्प सूख गए ,
भाव- गंध रूठ गए ,
मस्ती की वीणा के ,
काव्य- तार टूट गए ,
किस्मत भी खेल रही
कैसे -कैसे दांव |

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