PRAGYA
Monday, July 9, 2012
उनकी नज़रों में मैं
,
उल-जुलूल लिखता हूँ
|
क्योंकि काँटों के बीच
,
मैं फूल लिखता हूँ
||
हवाओं ने उड़ाया था
,
मिटाने को वजूद मेरा
,
इसलिए मैं जमीं की संदली धूल लिखता हूँ
|
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