Thursday, July 19, 2012

बोझ और भूख 

पीठ और पेट की 
संस्कृति के बीच
बोझ और भूख 
ऐसे चरित्र हैं
जिनके कई अक्स हैं
जो खुरदुरे रूप में
जिंदगी के बरक्स हैं |
आत्मा की भूख की
ह्त्या न कर दी जाये
उसकी साजिश से तंग आकर
आदमी
कभी-कभी
ऐसे राह पर चला जाता है
जहाँ अनजाने में
मिलती है उसे
एक नई रोशनी ,
एक नई दिशा ,
एक नई परिभाषा
एक नया निकष |
लगता है कि
हर नई दिशा और परिभाषा के लिए
भूखा होना ,
निहायत जरुरी सच है
जिसका बोझ
जो पीठ सह लेता है
वहीं कविता में कुछ कह लेता है
और इस क्षणिक दुनिया में भी
सदियों तक रह लेता है
जैसे कबीर ,निराला ,नागार्जुन,मुक्तिबोध ........

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