Thursday, July 19, 2012

तू ज्ञान अपना ,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |
तू अभिमान अपना ,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |
तू क्या देगा किसी को, घृणा के सिवा जिंदगी में ,
ये सम्मान अपना ,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |
जब आसमान हीं , उड़ान का दुश्मन  हो जाये ,
वो आसमान अपना ,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |
इन्सान इन्सान होता है महज़, हमें मालूम है ,
तू हिन्दू ,मुसलमान अपना ,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |
बोझ और भूख 

पीठ और पेट की 
संस्कृति के बीच
बोझ और भूख 
ऐसे चरित्र हैं
जिनके कई अक्स हैं
जो खुरदुरे रूप में
जिंदगी के बरक्स हैं |
आत्मा की भूख की
ह्त्या न कर दी जाये
उसकी साजिश से तंग आकर
आदमी
कभी-कभी
ऐसे राह पर चला जाता है
जहाँ अनजाने में
मिलती है उसे
एक नई रोशनी ,
एक नई दिशा ,
एक नई परिभाषा
एक नया निकष |
लगता है कि
हर नई दिशा और परिभाषा के लिए
भूखा होना ,
निहायत जरुरी सच है
जिसका बोझ
जो पीठ सह लेता है
वहीं कविता में कुछ कह लेता है
और इस क्षणिक दुनिया में भी
सदियों तक रह लेता है
जैसे कबीर ,निराला ,नागार्जुन,मुक्तिबोध ........

Sunday, July 15, 2012

अपना किसे बनाएँ, समझ में नहीं आता |
हाले-दिल किसे सुनाएँ ,समझ में नहीं आता |
नफ़रत भरे माहौल का, अनुभव हुआ जबसे ,
हम किस दिशा में जायें ,समझ में नहीं आता |
जिंदगी ने कब कहा कि मत ख्वाब देख |
तू जूगनू के साथ-साथ आफताब देख |
दीये की लौ से प्यार कर जिंदगी भर ,
उसी लौ में चाँद -सितारों का शबाब देख |
खुश्बू से लबरेज़ करना हों इंसानियत गर, 
अपने ख्वाब में मुहब्बत का गुलाब देख |

Monday, July 9, 2012


माँ के प्रसव बिना ,जीवन नहीं होता|

वैसे हीं बिना दर्द, सृजन नहीं होता ||

इश्क भी कायल है, तेरी दोस्ती का ,

बिना इसके, अपनापन नहीं होता |

उनकी नज़रों में मैं ,उल-जुलूल लिखता हूँ |

क्योंकि काँटों के बीच,मैं फूल लिखता हूँ ||

हवाओं ने उड़ाया था , मिटाने को वजूद मेरा ,

इसलिए मैं जमीं की संदली धूल लिखता हूँ |

जहाँ हर मंच से नेता ,यहीं जुमला सुनाता है |
 कभी गाँधी कभी सुभाष से, नाता बताता है |
नहीं सम्बन्ध होता कोई , उनका उन शहीदों से ,
उन्हीं के नाम पर फिर भी, वह रोटी कमाता है |
के गर मारो उसे  जूते,फिर भी बेशरम हंसता,
पहनकर वहीँ जूता, सभा से वह खिसक जाता है |

ये तेरी आत्मीयता का नूर हो या मेरी मस्ती का सुरूर हो|

खुदा कसम जो भी हो , तुम खुबसूरत जरुर हो|
ये तेरी आत्मीयता का नूर हो या मेरी मस्ती का सुरूर हो|

खुदा कसम जो भी हो , तुम खुबसूरत जरुर हो|
हृदय की सेज पर विराजमान मेरी माँ ! 
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माँ!
जब से तू आई हो 
कविता के मंदिर में ,
कविता के शब्द
स्नेहसिक्त हैं |
अनुभूतियाँ -
कोमल हो गई हैं ,
बचपन के स्नेहिल मैदान पर-
उग आये हैं मुस्कान के दूब ,
फ़ैल रही है लालिमा -
ठंडे परिवेश के नीले क्षितिज पर ,
डूब रहे हैं हम आकंठ ,
ममता की पवित्र नदी में ,
ढह रहे हैं दिवार ,विचार भ्रम के ,
हृदय की सेज पर विराजमान मेरी माँ !
मेरे अंतरतम में
आशीर्वाद का कुछ बूँद ऐसा टपका
कि मुझमें ताजिंदगी
आदमी बने रहने की तमीज़ बनी रहे |
हम रौशनी के, हर किरन से वाकिफ हैं
किरन से लिपटी, हर तपन से वाकिफ हैं 
मित्रता के नाम पर, जो प्यार दिया मित्रों ने , 
उस प्यार की,हर चुभन से वाकिफ है ||
लोग मेरी भावनाओं को इंच ,गज ,फीता समझते हैं |
कम से कम आप मेरी कविता को कविता समझते हैं |
बुजुर्गों का हीं आशीर्वाद है कि दुनिया सलामत है ,
हम तो आपकी सलाहियत को गीता समझते हैं |
ख़ुशी देना ,ख़ुशी पाने से लाख बेहतर है ,
हम इसे जीने का उम्दा सलीका समझते हैं |
कुछ लोग हैं कि हमसे दूरियाँ बना लिए ,
कविता को मेरी बम का पलीता समझते हैं |
तुम फेसबुक पर चौबीस घंटे आँखें चार करते हो |
सच बतलाना कब बीबी- बच्चों से प्यार करते हो ?
लिखते हो तुम ,छपते हो तुम, रोज -रोज के खबर बने ,
क्यूँ सीधे-सादे जीवन को, अखबार करते हो |
दुनिया देखी है मैंने ,अनुभव रोज बताते हो ,
घर भी देखो प्यारे अपना , जिससे प्यार करते हो |
जो अपनों से प्यार करे ना ,दूसरों से क्या प्यार करे ,
कोरी लफ्फाजी से क्यूँ ,मनुहार करते हो |
मौन -संवाद करता क्षण 

हे अनाम ! 
यह कुछ क्षण स्मित-आँखों से 
मौन -संवाद करते अनायास
जो बीता यहाँ 
उससे उठी है
अपरिचय के गर्भ में
एक गुमनाम रिश्ते की टीस
तुमने जाते वक्त 
बार-बार पलटकर
लौटती आँखों से
कुछ कहा मुझसे
ऐसे -
जैसे यह क्षण अपना है
केवल अपना
इसे सुरक्षित रखना
तब मुझे लगा
कि छोड़ रहा हूँ मैं अभी
चुपके से एक प्रेम-पत्र यूँ हीं
एक अज्ञात दिशा के नाम
जो खो जाएगा जीवन के बीहड़ में
रह जाएगी केवल
उसकी स्मृति
जीवन -विस्मृति के बीच
मेरा पाथेय बन
समय के हासिये पर चस्पां
यह मौन -संवाद करता क्षण
याद आते हैं वे दिन 

जब देखते हैं तुम्हें 
याद आते हैं वे दिन
जब पत्थरों पर दूब बन उग आना 
राग के आग में बिना हिचक कूद जाना
पैरों में संपूर्ण आकाश लेकर घूमना
उफनती ईच्छाओं की लावण्यमयी बिस्तरे पर
मधुर अठखेलियाँ करना
घूरती नज़रों से बिलकुल नहीं डरना
दुनिया की नज़रों में यह अपराध था
हमारी नज़रों में महज़ खेल
खेल-खेल में जीतकर
तुमसे हार जाना
समय की कठोर पीठ पर भी
सपनों की खेती करना
स्मृतियों की ये मांसल मादक अनुभूतियाँ
करती हैं मुझे परेशान
जब देखते हैं तुम्हें
याद आते हैं वे दिन |
थके -थके पाँव 

लौटा हूँ अभी अभी,
मैं अपने गाँव-
थके-थके पाँव ||

रिश्तो की रुसवाई ,
फेंक रही झाग |
आसमान धधक रहा, 
उगल रहा आग |
कागज की छतरी है,
कैसे मिले छाँव |

शहराती मोर मिले ,
मोरों के शोर मिले |
सजे -धजे अजनबी से,
चेहरे हर ओर मिले |
याद आई आँगन के,
कौओं की काँव|

शब्द -पुष्प सूख गए ,
भाव- गंध रूठ गए ,
मस्ती की वीणा के ,
काव्य- तार टूट गए ,
किस्मत भी खेल रही
कैसे -कैसे दांव |