Friday, August 16, 2019

हिंदी एक सशक्त और सक्षम भाषा


हिंदी एक सशक्त और सक्षम भाषा
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जिस भाषा में राष्ट्र की अधिकांश आत्मा की धड़कन ,स्पंदन को सरलता से रूपांकित-रेखांकित करने की क्षमता हो ,उसे राष्ट्र भाषा कहना हीं उत्तम होगा |जब कोई बोली -आदर्श या परिनिष्ठित भाषा बनने के बाद किसी भी राष्ट्र की भावात्मक एकता तथा सांस्कृतिक चेतना प्रतिबिंबित करने की क्षमता रखती है -वह राष्ट्र भाषा की संज्ञा से विभूषित होती हैं |देश की अधिकांश जनता की समझ तथा अभिव्यक्ति इसी भाषा में होती है |राष्ट्र भाषा किसी भी राष्ट्र की तस्वीर होती है |किसी भी राष्ट्रभाषा में निम्नलिखित विशेषताएं अवश्य होनी चाहिए -
१- उसे देश की अधिकांश जनता बोलती और समझती हो तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से उसका विशिष्ट महत्त्व हो |
२- उस का व्याकरण सूखा नहीं ,बल्कि सरस और सहज होना चाहिए |
३- उसका साहित्य ज्ञान की विभिन्न विधाओं में विस्तृत और उच्चकोटि का हो |
४- दूसरी भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करने की अपूर्व क्षमता उस भाषा में होनी चाहिए |
५- उसका शब्द भंडार विशाल तथा विचार क्षेत्र अति विस्तृत हो |
६- उस भाषा के साहित्य में राष्ट्रीय संस्कृति की आत्मा ध्वनित होती हो और
७- उसकी लिपि अति सरल हो ,जिसे सरलता से लोग सिख सकें |
उक्त सन्दर्भ में हिंदी उक्त विशेषताओं से पूर्णतः आपूरित है |
जब भाषा का प्रयोग अति व्यापक और विस्तृत रूप से सारे राष्ट्र में होता है तो उसे राष्ट्र भाषा की संज्ञा दी जाती है और उसी का प्रयोग जब सरकारी कामों में होता है तो उसे राजभाषा कहते हैं |
विगत छः दशकों में हिंदी ने जो छलांग लगाई ही है वह बहुत आश्चर्य जनक पहलू है |इससे पहले की हम इसकी वर्तमान स्थिति की चर्चा करें थोडा हिंदी भाषा के संघर्षपूर्ण विकास पर नज़र डालें |
पहले अदालतों और दफ्तरों की भाषा उर्दू हुआ करती थी लेकिन मध्य प्रान्त [मध्य प्रदेश ] में 1872 में उर्दू के स्थान पर हिंदी को निचली अदालतों एवं दफ्तरों की भाषा घोषित कर दी गई |1881 में बिहार में उर्दू के स्थान पर हिंदी ने जगह ले ली |उत्तर प्रदेश में सन 1884 में गवर्नर बनकर आये अंग्रेज मैकडोनेल के प्रयास ने उर्दू के स्थान पर हिंदी को स्थापित करना चाहा पर सर सैयद अहमद खां ने उसका विरोध कर उसे दबा दिया ,फिर भी 1900 में मैकडोनेल ने 'हिंदी प्रस्ताव ' पारित कर फारसी लिपि के समकक्ष देवनागरी लिपि को घोषित कर दिया |फिर भी इस प्रस्ताव को कागजों में हीं रखा गया और मैकडोनेल का स्थानान्तरण कर दिया गया |हिदी को दफ्तरों और निचली अदालतों की भाषा बनाने के लिए 47 वर्ष प्रतीक्षा करनी पड़ी और उसे 1947 के बाद हीं उ.प्र . में सरकारी भाषा का दर्जा मिला |
जिन्ना ने जब उर्दू को मजहबी जुबान घोषित किया तो उर्दू में लिखने वाले हिन्दुओं ने हिंदी में लिखना शुरू कर दिया जैसे प्रेमचंद |दूसरे दशक यानी1920 तक कक्षा में 30 बालक उर्दू के और 3-4 हिंदी के छात्र होते थे ,लेकिन 1940 तक आते-आते 30 हिंदी और 3 -4 उर्दू के छात्र कक्षा में मिले |आज़ादी से पूर्व हीं हिंदी का विकास और लोकप्रियता में असीम वृद्धि हुई ,जबकि सरकारी संरक्षण प्राप्त नहीं था |
हिंदी के विकास के रास्ते में पंडित नेहरू बहुत बड़े रोड़ा थे |आज़ादी के संघर्ष का एक लक्ष्य था एक देश ,एक राष्ट्र,एक भाषा |हिंदी एक मात्र भाषा थी आज़ादी संघर्ष की,मगर नेहरू ने 1948 में मद्रास में घोषित किया कि अगर संविधान ने हिंदी को राजभाषा घोषित किया तो वे उसका विरोध करेंगे | फिर भी 14 सितम्बर 1949 में संविधान सभा ने राजभाषा के रूप में स्वीकार कर लिया |फिर भी नेहरू ने वह सब किया जिससे हिंदी राजभाषा के रूप में कभी भी स्थापित न हो सके | 13 सितम्बर 1949 को उन्हों ने कहा था - हमारी अपनी भाषा होनी चाहिए ..............इसके लिए प्रजातांत्रिक ढंग अपनाएंगे जोर -जबरदस्ती का [अथोरटेरियन ] से हिंदी फेल हो जाएगी और फिर उन्होंने हिंदी को 15 वर्षों के लिए प्रोबेशन पर रख दिया |
गोविन्द बल्लभ पन्त ने जब दिल्ली में उर्दू कि जगह हिंदी कि वकालत की तो नेहरू जी इतने भड़क गए कि पन्त जी उनके इस व्यवहार से असहज हो गए और उनको दिल का का दौरा पद गया और वे मृत्यु को प्राप्त हो गए |

तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 1961में मुख्यमंत्रियों के एक सम्मलेन में एक प्रस्ताव भेजा था किजिस प्रकार योरप में अलग-अलग भाषाएँ केवल एक लिपि [रोमन ] का प्रयोग करती हैं ,उसी प्रकार भारत में समस्त भाषाओं को देवनागरी में लिखा जाय तो राष्ट्रिय एकता मजबूत होगी ,जिसका समर्थन केरल ,तमिलनाडु तथा बंगाल के मुख्य मंत्रियों ने किया था ,लेकिन नेहरू मंत्री मंडल के शिक्षा मंत्री हुमायु कबीर ने एक मात्र विरोध किया और नेहरू सरकार ने ठंढे बसते में दाल दिया |
हिंदी के प्रति विरोधी मानसिकता के बावजूद जनभाषा हिंदी ने विगत छः दशकों में जो अपनी विस्फोटक और आश्चर्यजनक तस्वीर पेश की है वह सच्चाई के बहुत करीब है और वह सिद्ध करती है कि कोई भाषा अपनी उपयोगिता कैसे सिद्ध करती है |आज वैश्वीकरण के इस दौर में बाज़ार के बढ़ते प्रभाव ने हिंदी की इस ताकत को सिद्ध किया है |चूँकि हिंदी भाषा में दर्शक हैं ,बाज़ार है इसलिए लाभ की संभावना में निजी चैनल हिंदी को अपना रहे हैं |इस समय आप देख रहे हैं कि हिंदी चैनलों की एक बढ़ सी आ गई है |अब तो भारतीय प्रशासनिक सेवा ,आरक्षी सेवा ,अधिकोषी सेवा [बैंक ] ,तकनिकी शिक्षा क्षेत्रों एवं विभागों में भी लिखित और मौखिक रूप से हिंदी प्रयोग का प्रावधान हो गया है |अंग्रेजी की बहुत सारी पत्रिकाओं का हिंदी संस्करण भी निकाला जा रहा है |हिंदी माध्यम के विद्यार्थी संघ लोक सेवा की परीक्षाओं में रोज कीर्तिमान बना रहे हैं |अब तो प्रगति का मानक और आधुनिकता का प्रतीक इंटरनेट पर हिंदी का बाहुल्य हैं |हिंदी के जहाँ अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप का प्रश्न है वह विश्व मंच पर प्रयोग के आधार पर अनुपेक्षणीय हो चुकी है |अब हिंदी केवल भारत की हीं समन्वय की भाषा नहीं है अपितु वह विश्व समन्वय के लिए भी एक विलक्षण भाषा मंडल है |इसी का का प्रतिफल है कि आज विश्व के 120 विश्वविद्यालयों में हिंदी विभाग स्थापित हैं ,जहां हिंदी शिक्षण के साथ-साथ अनुसंधान कार्य भी चल रहे हैं |मारिशस,फिजी ,गुयाना ,त्रिनिनाद ,सूरीनाम आदि ऐसे देश हैं जहां शिक्षण के साथ -साथ व्यापक स्तर पर संपर्क भाषा के रूप में भी हिंदी का व्यवहार किया जाता है हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने वाले सत्साहित्याकारों में तुलसी ,सूर ,कबीर,निराला,महादेवी वर्मा ,दिनकर ,प्रेमचंद आदि की रचनाएँ महत्वपूर्ण हैं |
अभी तक संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी का प्रयोग नहीं होना विश्व-जनमत की उपेक्षा का विषय बन गया है |हिंदी के औचित्य को स्वीकार करते हुए अब प्रति वर्ष 24 अक्तूबर को 'संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस ' के साथ -साथ विश्व-हिंदी -दिवस मनाये जाने का संकल्प लन्दन में लिया जा चुका है |निःसंदेह संस्कृत -प्राकृत -अपभ्रंश की परम्परा में विकसित तथा 'आनो भद्राः क्रतवोयन्तु विश्वतः 'के आदर्श से युक्त हिंदी निखिल मानवता की रक्षा ,विश्वशान्ति ,अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना एवं निश्छल प्रेम की अभिव्यंजना की भाषा बन गई है |हिंदी सकारात्मक दिशा में अग्रसर है इसमें कोई दो राय नहीं है |

डॉ मनोज कुमार सिंह

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