Tuesday, August 13, 2019

चिंतन के झरोखे से

वंदे मातरम्!मित्रो!आज 'चिंतन के झरोखे से' मनुष्यता के सद् मार्ग पर एक भावयात्रा का सहज विश्लेषण प्रस्तुत कर रहा हूँ।इस यात्रा में आप भी सहयात्री बनें।

ओजस्वी बनिए, तपस्वी बनिए लेकिन उससे पहले मनस्वी बनिए क्योंकि मननशीलता ही मनुष्य को अनर्थ के गर्त में गिरने से बचाती है।बिना मननशीलता के मनुष्य विवेकहीनता का शिकार हो जाता है और जिंदगी भर अपने ही पाँव में कुल्हाड़ी मारता रहता है।मननशीलता मनुष्य के लिए रोशनी प्रदान करने वाला दीपक है,पथप्रदर्शक है।जब हम अपने भीतर की यात्रा करते हैं तो यही मननशीलता हमारे मन-हृदय में स्थित कुरीति,अज्ञानता,जड़ता,ढोंग,पाखंड,अंधविश्वास, भ्रमजाल, छुआछूत, ऊंच-नीच, स्वार्थ,घृणा एवं हिंसा के भाव रूपी कूड़े का आसानी से साक्षात्कार करा देती है,जिसे हम साफ कर जीवन पथ को उज्ज्वल और आनंदमय बना लेते हैं। जब व्यक्ति के अन्दर मननशीलता, विचार शीलता ,वैज्ञानिकता आती है तो व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र सुखी तथा उन्नतशील बनता है ,यही आर्यत्व है,इसके विपरित चलने पर व्यक्ति,परिवार, समाज, राष्ट्र में भीषण संघर्ष होता है जो कि हमारे पतन और दुखों का कारण बनते है!इसलिए 'मनुर्भव' का सिद्धांत सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत है।वेदों के अनुसार मन हृदय में स्थित है,मस्तिष्क में नहीं। आत्म तत्त्व को सुसारथि बताया गया है, जो चिंतन-मनन के विवेक से परिपूर्ण होकर जीवन रूपी रथ का संचालन करता है। आइये आत्मस्वरूप होकर चिंतन मनन के पहिए से चलने वाले जीवन रथ पर सवार हो मनुष्यता के सद् मार्ग पर प्रस्थान करें।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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