वंदे मातरम्!मित्रो!युगबोध से उपजा एक मुक्तक हाजिर है।
दादी की परियों वाले,किस्से नहीं रहे। माँ-बाप अब परिवार के,हिस्से नही रहे। सच आइनों की शक्ल में,यूँ ढल सके यहाँ, दिल में वे खरे,आजकल सीसे नहीं रहे।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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