Tuesday, August 13, 2019

गीतिका

वंदे मातरम्!मित्रो!एक गीतिका समर्पित है।

मुल्क की कमजोरियों को ढालकर हथियार में।
जाति,मजहब खूब बिके हैं सियासी बाजार में।

रिश्ते नाते प्यार सारे,खो चुके अब मायने,
आदमी जब से डुबा है,स्वार्थ के व्यापार में।

बेल पर जबसे हैं खुद,कुछ लोग देखा आपने,
फिर भी सारी खामियाँ,दिखती हैं चौकीदार में।

गर्दनें झुकती नहीं गर,दूर ही रहना जरा,
सर कलम हो जाएगा,वगरना दरबार में।

तख्त की खातिर सियासत हो रही केवल यहाँ,
स्वार्थसिद्धि में भले ये मुल्क जाए भाड़ में।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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