वंदे मातरम्!मित्रो!
इस बाजार के दौर में जो दिखाया जाता है,उसे ही देखा जाता है और वही दिखता भी है।तन ढकने और खोलने के बीच जो संबंध है,उसे जादुई कारीगरी कह सकते हैं।किस अंग को किस प्रकार आकर्षक बनाया जाए,बाजार उसकी पूरी जिम्मेदारी(?)निभा रहा है।शरीर के गुप्त स्थलों को प्रगतिशीलता के नाम पर लेखन में भी दिखाया जाता है।न्यूड देह दर्शन आज की काव्यात्मक विधा भी है।कविता के अधिकतर शब्द,पद, वाक्य लिजलिजी यौन कुंठा से लबरेज बजबजाते हुए पढ़ने को मिलते रहते हैं।इसमें कवियों से ज्यादा संख्या कवयित्रियों की है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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