Monday, July 25, 2016

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!पाकिस्तान बुरहान के मौत पर काला दिवस मना रहा है। आइये हम उसके विरोध में
सैल्यूट भारतीय सेना दिवस मनाएँ।

एक जनवरी से,संपूर्ण दिसंबर तक।
मारो बुरहानों को,घुसकर अन्दर तक।
काला दिवस मनाएँ,हर दिन आतंकी,
मौज मनाए सेना,सात समंदर तक।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज फिर एक मुक्तक हाजिर है। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।

स्वार्थपूर्ति की ईच्छाओं से,भरे हुए लोगों के बीच।
निर्भय हो मैं खड़ा रहा हूँ,डरे हुए लोगों के बीच।
बहुत बार हुंकार किया,कि जग जाएँ सोये सारे,
लेकिन फर्क नहीं पड़ता अब,मरे हुए लोगों के बीच।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक हाजिर है। आप सभी का स्नेह सादर अपेक्षित है।

अपनी पहचान,बचाकर रखना।
दिल में मुझको भी,बसाकर रखना।
नाव डुब जाती है,अक्सर नदी में,
इससे अच्छा है,इक पुल बनाकर रखना।

डॉ मनोज कुमार सिंह

Saturday, July 16, 2016

मुक्तक

वन्दे मातरम्!एक मुक्तक हाजिर है। मित्रो!आप भी देश के जवानों को हौसला दीजिए।

एक मरे तो सौ सौ मारो,बना नई परिपाटी।
दहशतगर्दों की चीखों से,दहला दे तू घाटी।
भारत माँ के वीर सपूतों!देश तुम्हारे संग है,
दौड़ाकर ऐसे मारो,दुश्मन ले मुँह की माटी।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्! मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।

जो खुद अपना पाँव,कब्र में लटकाए बैठे हैं।
कुर्सी लिप्सा में फिर भी ये,मुँह बाए बैठे हैं।
स्वार्थपूर्ति में लगे सदा से,राजनीति के ठगड़े
झूठ बोल लोगों को,सच से भटकाए बैठे हैं।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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मुक्तक

मुक्तक

तुमने एक शहीद किया,हमने भी बत्तीस मारे हैं।
जिनको भी मारा सबके सब,जनता के हत्यारे हैं।
अब तो पार्टी शुरू हुई है,कहाँ भाग कर जाओगे,
ढूंढ-ढूंढ के मारेंगे,हर गोली नाम तुम्हारे हैं।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!कश्मीर घाटी के हालात पर एक मुक्तक हाजिर है। प्रतिक्रिया सादर अपेक्षित है।

कभी थी रोशनी फैली,वहाँ पसरा अँधेरा है।
धरा के स्वर्ग पर आतंकियों का आज डेरा है।
फिर भी विश्वास है,लौटेगी एक दिन रोशनी निश्चित,
क्योंकि हर रात के पश्चात,इक आता सबेरा है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

Wednesday, July 13, 2016

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।
आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

जिन थालियों में खाते,उसमें ही छेद करते,
विश्वास के गले पर,खंजर चलाने वाले।
आतंकियों के मौत पर,मातम मना रहे हो,
लगता है तुम भी जल्दी,उपर हो जाने वाले।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गजल

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक समसामयिक गजल हाजिर है। अपनी टिप्पणी जरुर दीजिये।

जबसे हो गई परिवारों के,नाम सियासत।
हो गई गबन,घोटालों का,परिणाम सियासत।

संविधान,क़ानून की हत्या,करके निशदिन,
लोकतंत्र को कर देती,गुमनाम सियासत।

अब तो सफल वहीं है,आज यहाँ पर नेता,
जिसके कर्मों से होती ,बदनाम सियासत।

भेड़ भेड़ियों के जंगल के न्यायतंत्र-सा,
लेती जन बलिदान है ये,हर शाम सियासत।

हर गंदे धंधे की बदबू की मंडी-सी,
करती है अब केवल,घटिया काम सियासत।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

दिखता हूँ तुझे कुछ भी,मैं दूर से भले,
लेकिन हूँ मैं इक,अदना इंसान दोस्तों।
जब काटता पर झूठ की,सच की कटार से,
चिढ़ते हैं मुझसे सारे शैतान दोस्तों।।

शब्दार्थ-(पर-पंख)

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे अखंड भारतमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर हैं।
अपनी अनमोल टिप्पणी अवश्य दीजिए। सादर,

चलो बड़ा इक आतंकी,हैवान मरा तो।
सूअर की इक नाजायज,संतान मरा तो।
देर हुई पर आज,यहाँ सेना के हाथों,
भारतमाता का दुश्मन,बुरहान मरा तो।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक हाजिर है।अगर अच्छा लगे तो अपनी टिप्पणी अवश्य दें।

कमी इक है कि पत्थर हूँ,कभी गलता नहीं हूँ।
मगर इंसान के ईमान-सा,बदलता नहीं हूँ।
मुझसे मंदिर या मस्जिद,चर्च ,गुरुद्वारा बना कुछ भी,
सियासत की तरह मैं,फर्क कर छलता नहीं हूँ।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!एक मुक्तक सादर समर्पित है।

मंदिर पर मस्जिद बनवाना अच्छा है क्या?
कोर्ट का निर्णय भी झुठलाना,अच्छा है क्या?
रामलला की जन्मभूमि,है नींव राष्ट्र की,
किसी राष्ट्र की नींव मिटाना,अच्छा है क्या?

डॉ मनोज कुमार सिंह

दो दोहे

वन्दे मातरम्!मित्रो!दो दोहे समर्पित हैं। कृपया अपनी टिप्पणी देकर कृतार्थ करें। सादर,

थोड़ी भी गर है बची,तुझमें सही तमीज।
बो मत सत्ता के लिए,जातिवाद के बीज।।

अगड़ा पिछड़ा औ दलित,लेकर विषय विवाद।
नेताओं ने कर दिया,पूर्ण मुल्क बर्बाद।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

भोजपुरी मुक्तक

राम राम सगरी मित्र लोगन के!एगो भोजपुरी में मुक्तक परोसत बानी। रउवा सबके सनेह बनल रहो।

नव करमियन के हाल, मत पूँछी।
केतना बिगड़ल बा चाल, मत पूँछी।
कुर्सी के माजा जबसे मिलल बाटे,
अधजल गगरी के उछाल, मत पूँछी।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक दोहा हाजिर है। स्नेह दीजिएगा। सादर,

झूठ बोलना सीखिए,बनिए पलटीमार।
तभी रहेगी 'आप' की,दिल्ली में सरकार।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक सामयिक मुक्तक हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।

खुजली जबसे दिल्ली के,सरकार हो गए।
हाईटेक सब लूट,भ्रष्टाचार हो गए।
घड़ा पाप का फिर भी,तो फूटता ही है,
आज 'आप' के 'ख़ास',गिरफ्तार हो गए।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज के सच की पड़ताल करता हुआ एक मुक्तक हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

होते भले अनाड़ी गदहे।
लेकिन सब पर भारी गदहे।
हिरनी के संग रास रचाते,
आरक्षित सरकारी गदहे।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

सोलापुर के चित्रकार चन्द्रकान्त धोतरे द्वारा कलर पेंसिल द्वारा बनाए गए इस चित्र पर एक मुक्तक हाजिर है।

खूबसूरत सोंच से निकली हुई,
एक प्यारी चित्रकारी देखिए।
सुबह की पावन कली सी अनछुई,
स्वप्न में खोई क्वांरी देखिए।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक कुण्डलिया हाजिर है। अपना स्नेह जरुर दीजिए। सुप्रभात!!

स्वारथ,ईर्ष्या से मिले ,स्वाद सदा ही तिक्त।
और निराशा,वेदना,जीवन में अतिरिक्त।।
जीवन में अतिरिक्त,मधुरता मन में लाना।
दुसरों को दे ख़ुशी, सदा खुशियाँ खुद पाना।
जीवन का हो लक्ष्य,अगर करना परमारथ।
मिट जाता स्वयमेव,हृदय से कटुता,स्वारथ।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

खलनायक नायक, दिखने की कोशिश में हैं।
गर्दभ भी गायक,दिखने की कोशिश में हैं।
युग ही ऐसा आया है अब राजनीति में,
नालायक लायक,दिखने की कोशिश में हैं।

डॉ मनोज कुमार सिंह

Friday, July 1, 2016

अंतर्गीत

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक अंतर्गीत हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।

गीत
...............................
दर्द हमारे दिल से उठकर,
जब अधरों तक आते हैं।
शब्द मिले तो अनुभव अपना,
गाकर सदा सुनाते हैं।।टेक।।

धुआँ धुआँ कुछ फैला हो,
जब अंतर्मन की घाटी में,
बीज तड़पते हैं भावों के,
शुष्क हृदय की माटी में,
बरसाकर नयनों से बादल,
हम जीवन सरसाते हैं।
शब्द मिलें तो.............

जीवन सागर में सुख दुःख की,
लहरें निशदिन लहराएँ।
चंचल मन के पंछी उनमें,
कभी डूबे औ उतराएँ।
संघर्षों की नाव चढ़े जो,
वहीं मुक्तिपथ पाते हैं।
शब्द मिलें तो.........

सजा कल्पना के पृष्ठों को,
इंद्रधनुष के रंगों में।
बहा सदा सपनों की नदियाँ,
मधुरिम भाव तरंगों में।
चलो तमस की बस्ती में इक,
अरुणिम सुबह उगाते हैं।
शब्द मिलें तो..........

डॉ मनोज कुमार सिंह