Wednesday, July 23, 2014

वंदेमातरम् मित्रों !आज सामयिक युगबोध से अनुभूत एक मुक्तक आपको समर्पित .......आपका स्नेह हमेशा की तरह सादर अपेक्षित ....................

फिर डर गया हूँ आज, उसका प्यार देखकर |
लूटा था जिसने मुझको, लाचार देखकर |
ऐसा मुझे लगा था ,,बख्शी है ख़
ुशी उसने ,
पर दुःख उसे था , मुझको खुशगवार देखकर |
वंदेमातरम् मित्रो !आज एक कुण्डलिया आपको समर्पित ..........आपका स्नेह सादर अपेक्षित 

लालू के कटु व्यंग्य पर ,करने को आघात |
ताल ठोककर आ गए ,बादल ले बरसात ||
बादल ले बरसात ,बुझा दी प्यास धरा की |
सूखे जन -मन का जीवन भी हरा-भरा की |

बादल बोले- हो रहे ,अच्छे दिन चालू |
करना नहीं मजाक, दुबारा हम से लालू ||
वंदेमातरम् मित्रों ! देश आज एक मजबूत हाथ में है क्योंकि देश की करोड़ों जनता ने बहुत विश्वास के साथ देश की बागडोर इस हाथ में सौंपी है |अब इस मजबूत हाथ को देश की जनता के प्रति एक अहम जिम्मेदारी निभानी होगी | मैं इन्हीं मनोभाव से प्रेरित एक ताज़ा ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहा हूँ आपका स्नेह प्रतिक्रिया स्वरुप सादर अपेक्षित है ...................

दिन हैं अच्छे, ये अहसास कराया जाए |
हर मुफलिस को, अब सीने से लगाया जाए |

दबे-कुचले औ शोषित, वंचितों की धरती पे ,
गिरे इस मुल्क को ,बच्चे- सा उठाया जाए |

ग़मों की आँच पे ,ज़ज्बात का मरहम रख के ,
दर्द के पाँव का, हर जख्म मिटाया जाए |

बीज इंसानियत की, इस धरा पे कायम हो ,
किसी भी हाल में ,बच्चों को बचाया जाए |

जो भी भटके हैं ,उन्हें प्यार की थपकियों से ,
धीरे-धीरे हीं सही, राह पे लाया जाए |

जाति-मजहब की, दीवारों को तोड़कर अब तो ,
प्रेम की नींव पर ,इक मुल्क बसाया जाए |

वंदेमातरम् मित्रो! उत्तराखंड प्रवास में मुझे कैंचीधाम जाने का सुयोग मिला जहाँ बाबा नीम करोरी महाराज का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ |जिस दिन मैं बाबा के दरबार में पहुँचा भक्तों की भारी भीड़ थी लेकिन सुरक्षा व्यवस्था इतनी सुन्दर थी कि दर्शन करने में कोई परेशानी नहीं हुई |प्रसाद में मिले पुए वहीँ पंडाल में बैठकर ग्रहण किया |वहीँ मेरे मन में कुछ अनुभूति हुई जिसे पंक्तियों में आपको भी समर्पित कर रहा हूँ ...................

बाबा नीम करोरी के दरबार में |
भूल गया मैं दुनिया, उनके प्यार में |

प्यार, मुहब्बत दुनिया की सच्चाई है ,
बाकी बातें सब, झूठी संसार में |

श्रद्धा औ विश्वास, जगत में कायम हो ,
हनुमत आये,लछिमन के अवतार में |

मानवता की सेवा के, प्रतिमान बने ,
शोषित ,वंचित ,दलितों के उद्धार में |

चली आ रही भक्तों की,अनगिन टोली ,
देख रहा हूँ , कैंचीधाम पहाड़ में |
सगरी मित्र लोगन के राम-राम !आज रउवां सबके एगो भोजपुरी में मुक्तक समर्पित करत बानी |अगर नीमन बुझाव त आपन विचार आ स्नेह जरुर दिहीं...........
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डारविन के थिउरी अब सच बुझाता ,
आदमी औलाद ह लंगूर के |
एकता के सूत्र में माला गूथल,
रख न दे कवनो अभागा तूर के |

वंदेमातरम् मित्रों ! आप सभी का अपार स्नेह सदा बना रहे और मैं अपनी साहित्य-साधना के माध्यम से आप सभी की सेवा करता रहूँ |आज सम-सामयिक परिस्थितियों पर एक ताजा गजल आपको समर्पित कर रहा हूँ ..................आपका स्नेह टिप्पणी रूप में अपेक्षित है .....

धूप मतलब की नूरानी हो गई |
अब सियासत बदजुबानी हो गई |

वासना के पृष्ठ पर लिखी हुई ,
एक गन्दी-सी कहानी हो गई |

इश्क ने सीमा मिटा दी उम्र की ,
हुश्न बूढ़े की दिवानी हो गई |

देश यो यो और मुन्नी में डुबा,
गौण अब झाँसी की रानी हो गई |

कब तलक खरगोश हारेगा यहाँ ,
ये कथा कितनी पुरानी हो गई |

जो पिता सोता नहीं है रातभर ,
समझ लो बिटिया सयानी हो गई |
वंदेमातरम् मित्रों ! आज एक 'मुक्तक' आपको सादर समर्पित कर रहा हूँ जिसे आज की सियासी परिप्रेक्ष्य में समझ सकते हैं ...............

जिनकी रही, अदावत उनसे |
करते रहे, बगावत उनसे |
देख रहा हूँ ,अब तो उनकी ,
चलती अच्छी, दावत उनसे |

वंदेमातरम् मित्रों !आज एक कविता जो 1990 में कॉलेज के दिनों में मैंने लिखी थी, आप सभी को सादर समर्पित कर रहा हूँ .................अच्छी लगे तो आपका स्नेह टिप्पणी के रूप में सादर अपेक्षित है .............

मैं
खाली हो गई
दियासलाई की 
अंतिम तिल्ली हूँ
तब्दील मत करो मुझे
सिगरेटी धुओं में
या
कायर आत्मदाह में
चाहते हो
जलाना हीं अगर
तो
फेंक दो जलाकर
उन हत्यारी अट्टालिकाओं के चेहरों पर
जो झोपड़ियों के कब्र पर
खड़ी होकर
भयानक अट्टहास कर रही हैं
या
उस टोपी पर
जिसकी नकली
समाजवादी सदरी के दरवाजे पर
कहीं गांधीवादी
तो कहीं
लोहियावादी दूकान
तथा कुर्ते की खोली में
घोटाले व चकला घर
चलते हैं
या
जला दो उस चूल्हे को
जिसने लगातार कई दिनों से
आग का मुँह नहीं देखा
जिसके नहीं जलने से
उसका पूरा परिवार भूखा है |

डॉ मनोज कुमार सिंह