वंदेमातरम् मित्रों !आज सामयिक युगबोध से अनुभूत एक मुक्तक आपको समर्पित .......आपका स्नेह हमेशा की तरह सादर अपेक्षित ....................
फिर डर गया हूँ आज, उसका प्यार देखकर |
लूटा था जिसने मुझको, लाचार देखकर |
ऐसा मुझे लगा था ,,बख्शी है ख़ुशी उसने ,
पर दुःख उसे था , मुझको खुशगवार देखकर |
फिर डर गया हूँ आज, उसका प्यार देखकर |
लूटा था जिसने मुझको, लाचार देखकर |
ऐसा मुझे लगा था ,,बख्शी है ख़ुशी उसने ,
पर दुःख उसे था , मुझको खुशगवार देखकर |