Sunday, April 14, 2013

अपने शौक को महँगा,कोई सस्ता बनाता है |
कोई कठिनाईयों के बीच भी रस्ता बनाता है |

अपने गाँव के दर्जी को हमने आज भी देखा ,
बच्चों के लिए स्कूल का बस्ता बनाता है |

यहाँ पर मुफलिसों की झोपड़ी में रात बिता कर ,
सियासत दां करोड़ों का सदा भत्ता बनाता है |

कभी ईमान ,साहस धैर्य का हथियार बनाकर ,
अकेला आदमी संघर्ष का दस्ता बनाता है |

जिसे सौंपा था हमने मुल्क हिन्दुस्तान ये सारा ,
वहीं इस मुल्क की हालात को खस्ता बनाता है |

सुबह में मुस्कुराते फूल चमकते ओस बूंदों से ,
सूर्य के आगमन पर शज़र गुलदस्ता बनाता है |

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