Sunday, April 14, 2013

जीवन के राहों के असली प्यार पिताजी |
नमन तुम्हारे चरणों में सौ बार पिताजी ||
कर्त्तव्यों की गोद ,पीठ ,कन्धों पर अपने ,
मुझे बिठा दिखलाते थे संसार पिताजी |
भूख ,गरीबी ,लाचारी की कड़ी धूप में ,
तुम छाया के बरगद थे छतनार पिताजी |
चोरी करते थे मगर तुम चोर नहीं थे ,
मेरी खातिर गए जेल कई बार पिताजी |
अहसासों की ऊँगली से गढ़ते थे जीवन ,
जीवन की मिटटी के थे कुम्हार पिताजी |
इतने नाज़ुक मधुर ,सरस कि लगते जैसे ,
पुष्प दलों पे ओस बूँद सुकुमार पिताजी |
माँ तो गंगा -सी पावन होती है यारों ,
मगर हिमालय से ऊँचे पहाड़ पिताजी |
मुझे हवाओं में खुशबू बन मिल जाते हैं ,
जाफरान-से अद्भुत खुश्बूदार पिताजी |
तुमको पढ़ना, रामचरित मानस पढ़ना है,
देहाती ,बकलोल, सहज, गँवार पिताजी |
जीवन -सागर के तट,तेरे इन्तजार में ,
बैठा हूँ इस पार ,गए उस पार पिताजी |

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