Thursday, March 14, 2013


मेरी तन्हाईयों में याद बनकर, तू हीं क्यों आता |

ख्वाबों में मेरे एक चाँद बनकर, तू हीं क्यों आता |

बता दे हे अलौकिक चेतना, मेरे ह्रदय में तू ,

सुरीली बाँसुरी अनुनाद बनकर, तू हीं क्यों आता |

समझ जब भी थकी मेरी, बताने को मुझे फिर भी ,

सहज अहसास- सा अनुवाद बनकर ,तू हीं क्यों आता |

टूटे रिश्ते हैं जब औ शब्द सारे, मौन बैठे हैं ,

मेरे शब्दों में फिर संवाद बनकर, तू हीं क्यों आता |

मुहब्बत की रूहानी औ रूमानी, रूप लेकर तू ,

शीरी के गाँव में फरहाद बनकर, तू हीं क्यों आता |

सृजन की क्यारियाँ अंतस में, जब भी शुष्क हो जातीं ,

उगाने को नया कुछ, खाद बनकर ,तू हीं क्यों आता |


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जवां-जवां सा एक खुमार ,उनकी नज़रों में है |

कुछ मुहब्बत ,कुछ करार ,उनकी नज़रो में है |

कब से पलकें बिछा के, अपने दर पे बैठे वो ,

एक बेसब्र इंतज़ार ,उनकी नज़रों में है |

गुनगुनी धूप-सी मुस्कान की लकीरों में ,

दिख रहा प्यार का इजहार, उनकी नज़रों में है |

पाँव पड़ते नहीं, सीधे ज़मीं पे देखो ना ,

अल्हडी उम्र का इक भार, उनकी नज़रों में है |

इक चंचल हिरन को, कैद करके रखा है ,

एक मज़बूत कारागार, उनकी नज़रों में है |

तोड़ देती हरेक बांध, सबके संयम की ,

एक सैलाब- सी रफ़्तार ,उनकी नज़रों में है |

मिलाकर नज़र उनसे, मैंने सोचा दूर हो लूँ ,

उलझ कर रह गए हर बार ,उनकी नज़रों में हैं |

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