अजनबी-सा शहर ये जब से बसा है |
इस शहर में हादसा ही हादसा है |
कोई भी दिखता नहीं अपना यहाँ पर ,
भीड़ में हर आदमी तनहा फँसा है |
रोशनी की आँख में तेज़ाब बोकर ,
अब अन्धेरा बस्तियों में आ बसा है |
साँप की अब अहमियत को ख़त्म करके ,
आदमी ने आदमी को खुद डंसा है |
खौफ के साए में भी मैंने सूना है ,
एक बच्चा कहीं पर खुलकर हँसा है |
...................डॉ मनोज कुमार सिंह
इस शहर में हादसा ही हादसा है |
कोई भी दिखता नहीं अपना यहाँ पर ,
भीड़ में हर आदमी तनहा फँसा है |
रोशनी की आँख में तेज़ाब बोकर ,
अब अन्धेरा बस्तियों में आ बसा है |
साँप की अब अहमियत को ख़त्म करके ,
आदमी ने आदमी को खुद डंसा है |
खौफ के साए में भी मैंने सूना है ,
एक बच्चा कहीं पर खुलकर हँसा है |
...................डॉ मनोज कुमार सिंह
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