कर सके फिर से निर्बल से चंगा तुम्हें |
भेंट करता हूँ छंदों की गंगा तुम्हें |
जो शहीदों की कुर्बानियों से मिला ,
गर्व से झूमता एक तिरंगा तुम्हें |
जिनकी साज़िश से गुलाम है भारती ,
ऐसे चेहरों को करना है नंगा तुम्हें |
जाति ,भाषा तथा धर्म के नाम पर ,
रोकना है यहाँ आज दंगा तुम्हें |
आज संकल्प की मुट्ठियाँ भींच लो ,
दुश्मनों से भी लेना है पंगा तुम्हें |
......................डॉ मनोज कुमार सिंह
भेंट करता हूँ छंदों की गंगा तुम्हें |
जो शहीदों की कुर्बानियों से मिला ,
गर्व से झूमता एक तिरंगा तुम्हें |
जिनकी साज़िश से गुलाम है भारती ,
ऐसे चेहरों को करना है नंगा तुम्हें |
जाति ,भाषा तथा धर्म के नाम पर ,
रोकना है यहाँ आज दंगा तुम्हें |
आज संकल्प की मुट्ठियाँ भींच लो ,
दुश्मनों से भी लेना है पंगा तुम्हें |
......................डॉ मनोज कुमार सिंह
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