सपने का सच
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जिसने भी कहा –
सपने का सच
सच नहीं होता
शायद देखा नहीं कभी
उसकी आँखों ने
सपने का सच
या
सच के सपने
क्योंकि सपने बुनना या देखना
डूबना है समुद्र में
और समुद्र में डूबना
आत्मगत करना है
समुद्र का खारापन
जो स्वाद के वर्णमाला से
बाहर का हिज्जे है
जिसे कंठगत करने में
भाषा की जीभ ऐंठ जाती है
फिर भी मैं
सुनता हूँ सपना
डूबा हुआ हूँ आकंठ
समुद्र में
पी चुका हूँ
उसका बहुत सारा खारापन
चाहते हो अगर
उसे देखना
तो देखो मेरी आँखों में
एक समुन्दर ठाठें मारता
खारे जल से
भरा है लबालब
जो किसी व्यक्ति के
डूबने के लिए काफी है
मगर शर्त ये है
कि डूबने से पूर्व
करना पडेगा आत्मगत
उसका खारापन
यह खारापन हीं
बचाए है इस धरती को
जिसके कारण आज भी
वह हरी-भरी सी दिखती
तैरती हुई समुद्र में
सुरक्षित है
यह खारापन हीं
बचाएगा तुम्हें भी
गीत बन गुनगुनाएगा
देगा तुम्हें
एक अहसास की गीली जमीन
जिस पर उग सकेंगे
सपनों के बीज
जीवन के रेत में
क्या अच्छा होता
कि एक समुद्र मिलता गला
दूसरे समुद्र के
आँखों का होता रास्ता
जिसमें देखते वे
सपने का सच
जो सच हीं होता है
कभी झूठ नहीं होता
जिसे देख नहीं पातीं
ये दिग्भ्रमित आँखें
और कहती फिरती हैं
सपने का सच
सच नहीं होता
हाँ ,यह भी सच है
कि जब से आ गए
समुद्र में घड़ियाल
तब से
सपने का सच
सच नहीं है |
........डॉ मनोज कुमार सिंह
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जिसने भी कहा –
सपने का सच
सच नहीं होता
शायद देखा नहीं कभी
उसकी आँखों ने
सपने का सच
या
सच के सपने
क्योंकि सपने बुनना या देखना
डूबना है समुद्र में
और समुद्र में डूबना
आत्मगत करना है
समुद्र का खारापन
जो स्वाद के वर्णमाला से
बाहर का हिज्जे है
जिसे कंठगत करने में
भाषा की जीभ ऐंठ जाती है
फिर भी मैं
सुनता हूँ सपना
डूबा हुआ हूँ आकंठ
समुद्र में
पी चुका हूँ
उसका बहुत सारा खारापन
चाहते हो अगर
उसे देखना
तो देखो मेरी आँखों में
एक समुन्दर ठाठें मारता
खारे जल से
भरा है लबालब
जो किसी व्यक्ति के
डूबने के लिए काफी है
मगर शर्त ये है
कि डूबने से पूर्व
करना पडेगा आत्मगत
उसका खारापन
यह खारापन हीं
बचाए है इस धरती को
जिसके कारण आज भी
वह हरी-भरी सी दिखती
तैरती हुई समुद्र में
सुरक्षित है
यह खारापन हीं
बचाएगा तुम्हें भी
गीत बन गुनगुनाएगा
देगा तुम्हें
एक अहसास की गीली जमीन
जिस पर उग सकेंगे
सपनों के बीज
जीवन के रेत में
क्या अच्छा होता
कि एक समुद्र मिलता गला
दूसरे समुद्र के
आँखों का होता रास्ता
जिसमें देखते वे
सपने का सच
जो सच हीं होता है
कभी झूठ नहीं होता
जिसे देख नहीं पातीं
ये दिग्भ्रमित आँखें
और कहती फिरती हैं
सपने का सच
सच नहीं होता
हाँ ,यह भी सच है
कि जब से आ गए
समुद्र में घड़ियाल
तब से
सपने का सच
सच नहीं है |
........डॉ मनोज कुमार सिंह
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