युवा जब सुंदरी औ सुरा में मदहोश है |
लुटती आबरू पर, आदमी खामोश है |
वतन की दुर्दशा से ,व्यथित सदियों से कवि,
अकेले जागरण का, कर रहा उदघोष है |
सियासत नफरतों की, कुर्सियाँ करती रहीं ,
हिस्से में मिला सबको, महज़ अफ़सोस है |
किसी के ख़ुशी ,गम में, अब कोई शामिल नहीं ,
अजनबी शहर में, संवेदना बेहोश है |
............................डॉ मनोज कुमार सिंह
लुटती आबरू पर, आदमी खामोश है |
वतन की दुर्दशा से ,व्यथित सदियों से कवि,
अकेले जागरण का, कर रहा उदघोष है |
सियासत नफरतों की, कुर्सियाँ करती रहीं ,
हिस्से में मिला सबको, महज़ अफ़सोस है |
किसी के ख़ुशी ,गम में, अब कोई शामिल नहीं ,
अजनबी शहर में, संवेदना बेहोश है |
............................डॉ
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